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सात फेरे
सात वचन,
शुरू हुआ
विवाह बंधन,
रस्मो-रिवाज
का ये संगम।
खत्म हुई आजादी
मिट गया स्वतन्त्र अधिकार,
जाने कैसे ,किन बेड़ी में
बंध गया घर परिवार।
विवाह है बंधन प्रीत का,
न कि कैद का।
सोचो,समझो रीत को,
दो जीने की आजादी
अपने मीत को।
बंधे हो प्रीत की डोर से,
रखो निभा के प्रीत को।
पति या पत्नी से पहले
एक नादां इंसान है,
अपनी चाहत
अपनी मर्जी से जीना,
उसकी शान है।
दिया हाथ थमा,
तुम्हारे हाथों में।
नहीं बेच दिया खुद को
अपने अहसासों को उसने,
जीना और खुश रहना
यारों ये ही रिश्तों की,
असली पहचान है॥
#संध्या चतुर्वेदी
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This is truly helpful, thanks.
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