Read Time2 Minute, 33 Second
रोज देखा करता था
उसे आते-जाते
चार चक्कों की गुड़गुड़ी पर बैठा
गंदा-सा मैला-कुचैला
रेल्वे की प्लेटफॉर्म पर,
आते-जाते राहगीरों को
घूरता रहता था…।
कभी-कभी अजीब हरकतें करता,
राहगीरों का ध्यान पाने के लिए
मांगता था वो कभी-कभी कुछ,
पेट की आग बुझाने के लिए।
प्लेटफॉर्म पर खड़ी रेलगाड़ी,
के आरक्षण के डिब्बे में
बैठा था कोई शरीफ-
सा दिखनेवाला आदमी,
कुछ अलसाया-सा
कुछ परेशान
उसी परेशानी में…
एक चमकीला डिब्बा खोला उसने,
कुछ खाने चीजें होंगी शायद
आंखें बता रही थी,उसकी
जैसे ही उसने वह खाने की चीज
मुंह में रखी,कड़वा-सा मुंह बनाया,
थूक दिया तुरंत प्लेटफॉर्म पर
बावजूद पढ़ने के
‘स्वच्छ भारत मिशन’
की दर्शनी तख्ती को।
उसी चीज को भी देखा
उसने,पूरी ज़ोर से,
अपनी चार चक्कों वाली
गुड़गुड़ी को दौड़ाया,
और एक ही पल में
लपक ली खिड़की से
बाहर थूकी हुई
वो खाने की चीज।
फिर अपनी मैली-सी फटी-पुरानी
शर्ट से उसे साफ करके,
वो बड़ी-बड़ी खुशी से गटक गया
तभी रेलगाड़ी और
वो रेंगने लगे…
अपने-अपने गंतव्य की ओर…॥
#संजय वासनिक ‘वासु’
परिचय : संजय वासनिक का साहित्यिक उपनाम-वासु है। आपकी जन्मतिथि-१८ अक्तूबर १९६४ और जन्म स्थान-नागपुर हैl वर्तमान में आपका निवास मुंबई के चेंबूर में हैl महाराष्ट्र राज्य के मुंबई शहर से सम्बन्ध रखने वाले श्री वासनिक की शिक्षा-अभियांत्रिकी है।आपका कार्यक्षेत्र-रसायन और उर्वरक इकाई(चेम्बूर) में है,तो सामाजिक क्षेत्र में समाज के निचले तबके के लिए कार्य करते हैं। इकाई की पत्रिका में आपकी कविताएं छपी हैं। सम्मान की बात करें तो महाविद्यालय जीवन में सर्वोत्कृष्ट कलाकार-नाटक सहित सर्वोत्कृष्ट-लेख से विभूषित हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-शौकिया ही है।
Post Views:
539
बहुत ही उम्दा संजय सर्…..Keep writing …..
Lovely thought penned down……