दिल के मेले में…

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vivek

खो सा गया वो दुनिया के मेले में,
पास था कितना अपने वो अकेले में।

भुलाकर वो खुद को खुद,
पड़ा वो दुनिया के झमेले में।

क्यों है तन्हा तू अब भी,संग दुनिया, रहकर भी सोचता है वो अकेले में।

इससे बेहतर तो तू तब था जब तू, खोया था अपने दिल के मेले में ।

                                                                                  # विवेक दुबे

परिचय : दवा व्यवसाय के साथ ही विवेक दुबे अच्छा लेखन भी करने में सक्रिय हैं। स्नातकोत्तर और आयुर्वेद रत्न होकर आप रायसेन(मध्यप्रदेश) में रहते हैं। आपको लेखनी की बदौलत २०१२ में ‘युवा सृजन धर्मिता अलंकरण’ प्राप्त हुआ है। निरन्तर रचनाओं का प्रकाशन जारी है। लेखन आपकी विरासत है,क्योंकि पिता बद्री प्रसाद दुबे कवि हैं। उनसे प्रेरणा पाकर कलम थामी जो काम के साथ शौक के रुप में चल रही है। आप ब्लॉग पर भी सक्रिय हैं।

 

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2 thoughts on “दिल के मेले में…

  1. “हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी,फिर भी तन्हाइयों का शिकार आदमी।”एकाकीपन की पीड़ा का भावुक चित्रण।ये बाद में ही अनुभव होता है कि दिल के झमेले में भी “मैं तन्हा था मगर इतना नहीं था।”सुन्दर रचना।

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Фанис Джураев

Tue Apr 18 , 2017
Фанис Джураев Тимурович (Мытищи, Россия). Родной город: Ташкент. Город проживания: Москва. Год рождения: 24.04. Логин в сети Интернет – fanis70, использует мобильный телефон +79261851931 (Viber, WhatsApp). Емаил: fanisdghuraev@gmail.com, Skype-логин fanis240470. Мобильный телефон в Турции – +90 (538) 0598740 (если уже не отключен). Профиль в Facebook.com Post Views: 639

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