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अब मेरा भी आसमान नीला होगा,
ऊगते सूरज की तरह लाल
तमतमाया नहीं होगा,
मैं किसी भय से भयभीत नहीं हूं
साँझ की ललछौह पीलापन भी अब न होगा।
मुझे प्यार नहीं हुआ,
मैं नहीं देखना चाहता
किसी की माँग का सिन्दूर,
मैं नहीं देखना चाहता
किसी की लाली चुनर,
क्योंकि,उजड़ चुका है सब कुछ
मेरी बहन का,
लूट चुका है सब कुछ
मेरी प्रेमिका का..
मैंने नहीं पिया है खून
किसी के ज़िस्म का।
मेरा आसमान
न सफेद होगा,न लाल होगा,
मेरा आसमान नीला होगा
क्योंकि,पीया है मैंने सब कुछ
जहर समझकर॥
#रुपेश कुमार
परिचय : चैनपुर ज़िला सीवान (बिहार) निवासी रुपेश कुमार भौतिकी में स्नाकोतर हैं। आप डिप्लोमा सहित एडीसीए में प्रतियोगी छात्र एव युवा लेखक के तौर पर सक्रिय हैं। १९९१ में जन्मे रुपेश कुमार पढ़ाई के साथ सहित्य और विज्ञान सम्बन्धी पत्र-पत्रिकाओं में लेखन करते हैं। कुछ संस्थाओं द्वारा आपको सम्मानित भी किया गया है।
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Wed Nov 22 , 2017
थक गया हूँ ए-जिंदगी,लड़ते-लड़ते। झूटे फ़रेबी मक्कारों से,भिड़ते-भिड़ते॥ संभल-संभल के संभला हूँ में,गिरते-गिरते। पहुँच गया हूँ इस हाल में,बढ़ते-बढ़ते॥ उतर गया कसौटी पर बस,चढ़ते-चढ़ते। कट गई रातें जीवन अनुभव,पढ़ते-पढ़ते॥ बढ़ गए लोग ख़ुशामदी से यूँ,मंज़िल तक। झूठी तारीफों के पुल बस,गढ़ते-गढ़ते॥ कसीदे पढ़ते-पढ़ते….॥ […]