मेरा घर

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aalok
मैंने स्वर्ग को…
धरा पर उतरते देखा है।
देवताओं को भी…
चहल-पहल करते देखा है।
ये जो मेरा घर है न…
इसमें मैंने हर रुप को संवरते देखा है॥
यहाँ हिन्दुओं से विशेष स्नेह नहीं …
न ही मुस्लिमों से परहेज़ है कोई।
ये जो मेरा घर है न…
इसमें मैंने हर धर्म को तरते देखा है॥
सत्य का वर्चस्व है यहाँ…
सत्य ही धर्म है यहाँ।
ये जो मेरा घर है न…
इसमें मैंने लोगों को कर्म पर मरते देखा है॥
इक शांति-सी है यहाँ…
इक नई शक्ति को अपने अंदर भरते देखा है।
ये जो मेरा घर है न…
इसमें मैंने द्वेष को मरते देखा है॥
यहाँ ज्ञान पलता है पल-पल…
स्नेह और मानवता का गुण भरते देखा है।
ये जो मेरा घर है न…
इसमें मैंने संस्कार को पलते देखा है॥

                                                                         #आलोक रंजन

परिचय: आलोक रंजन की शिक्षा स्नातक (प्रा.भा.इतिहास)है। आप लगभग सभी साहित्यिक विधा में लेखन करते हैं। प्रकाशित कृति आगाज़(साझा काव्य संग्रह) है तो, कुछ पत्रिकाओं में कविताएं,लघु निबंध प्रकाशितहैं। आप जिला बेगुसराय(बिहार)में रहते हैं।

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