कहीं कुछ रह तो नहीं गया

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dineshchandr
पिलाकर दूध झट शिशु को,फटाफट हो गई रेडी,
उठाया पर्स,मोबाइल,घड़ी,चाभी,चतुर लेडी।
इधर ताके-उधर ताके,नहीं जब ध्यान कुछ आया,
लगा आवाज आया को,वही फिर प्रश्न दुहराया।
कहीं कुछ रह तो नहीं गया…
प्रश्न में कुछ भी कहाँ नयाll

बिदा बिटिया हुई जैसे,हुई बारात ज्यों ओझल,
अटैची-बैग लेकर के हुए तैयार सब दल-बल।
अतिथिशाला करें खाली पिता-माता,बहन-भाई,
सभी वापस चले घर तो,बुआजी प्रश्न दुहराई।
कहीं कुछ रह तो नहीं गया…
प्रश्न में कुछ भी कहाँ नयाll

बसा परदेश में बेटा,वहीं पैदा हुई पोती,
मिला वीजा गया बाबा,बढ़ी फिर आँख की ज्योति।
खुशी के दिन उड़े झटपट,विदाई की घड़ी आई,
चले सामान जब लेकर करे सुत प्रश्न दुखदाई।
कहीं कुछ रह तो नहीं गय…
प्रश्न में कुछ भी कहाँ नयाll

पड़े बीमार जब बापू,कृषक बेटा करे सेवा,
मगर भगवान की मर्जी, हुई माँ शीघ्र ही बेवा।
चिता जैसे जली उनकी,हितैषी घर चले जाते,
लगा जब लौटने बेटा,पड़ोसी प्रश्न दुहराते।
कहीं कुछ रह तो नहीं गया…
प्रश्न में कुछ भी कहाँ नयाll

#दिनेशचन्द्र गुप्ता 

परिचय: दिनेशचन्द्र गुप्ता का साहित्यिक उपनाम-रविकर
हैl जन्मतिथि-15 अगस्त 1960 और जन्म स्थान-पटरंगा (फैजाबाद,उत्तर प्रदेश) हैl  वर्तमान में आपका निवास धनबाद शहर(झारखण्ड) के आईएसएम के पास में हैl एडवांस डिप्लोमा इन माइनिंग इंस्ट्रूमेंटेशन एन्ड टेलीकम्यूनिकेशन(धनबाद)
कि शिक्षा ली हैl कार्यक्षेत्र-शिक्षण ही हैl लेखन में विधा-छंद हैl 
प्रकाशन में आपके नाम दोहा संकलन है,तो ब्लॉग पर भी लिखते हैंl आपके लेखन का उद्देश्य-स्वान्तः सुखाय हैl 

matruadmin

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