
फटे जूते अपने आप में अनोखे होते हैं जो धूल खाकर अनुभव समेटकर ठोकर खाकर भी आगे बढते जाते हैं । और आगे भी बढते रहने का हौसला रखते हैं । ये वही जूते है जो स्वयं कांटो पर चले हैं पर मजाल नहीं कि पैरो तक चुभने दें।
अब इन्हें तो लोग निश्चिंत होकर पहनते हैं न मिट्टी लगने का डर न चोरी होने का भय न फटने की चिंता ।
हाँ चोरी शब्द से याद आया फटे जूते के कारण ही भगवान में ध्यान लगता है । कैसे? नये होते तो मंदिर के बाहर उतारकर भी चित्त से न उतरता सो ध्यान कैसे लगता। इसीलिए तो ये बड़े अनमोल है । वैसे ये मध्यमवर्गीय परिवार से दूर रहते हैं या तो निम्न वर्ग के लोगों के लिए उपयोगी होते हैं या अमीर वर्ग के कंजूसो का पसंद मध्य वर्ग इससे जल्द ही दूरी बना लेता है।
वैसे फटे जूते कही भी धोखा दे जाने का भय साथ लेकर चलते हैं पर बड़े काम के भी है किसी पर वार करने का हथियार बनने में इन्हें खुशी होती है । कई बार तो ये सिर चढ़कर बोलते हैं कई के सिर पर सुशोभित होने का अनुभव लेकर फटे जूते इतराते है।
चुनावी सभा हो या नेता जी से नाराजगी इन सभी में बड़े काम आते हैं जहाँ बडे बडो को मंच पर जगह नहीं मिलती वहां बड़े ठाठ से उछाले जाते हैं । बड़े काम के हैं ये महाशय कठिन दिनों के साथी भी है जब गरीबी सताती है तो ये याद आते हैं ।
कभी कभी लोगों को देखकर खीसें निकलते हुए मुख फैला देते है तब तो इन्हें इनके डाक्टर (मोची) से इसका इलाज भी कराना पडता है ।
पर ये अपनी शान नहीं दिखाते इनको बार बार दुलारना पुचकारना छाडना नहीं पड़ता । अपने रंग में मस्त पर उडी रंगत में भी खीस निकालते मुस्कुराहट लिए रहते हैं ।
इनकी अपनी शान भी होती हैं इन्हें इनाम में दिया जाता है ।
और कभी कभी सिर चढ़कर बोलते हैं । फटे जूते की महिमा निराली है । ये गाली के बाद बरसात की तरह भी आते हैं आसमान से उछलते हैं । और क्या लिखूं फटे जूते की महिमा मैं विन्ध्य प्रकाश मिश्र लिखने में अक्षम हूँ । किसी का इनके साथ अनुभव हो तो साझा अवश्य करें । इनकी गाथा अमर महिमा अपरम्पार है ।
व्यंग्य लेख विन्ध्य प्रकाश मिश्र विप्र।