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राजनीत का गेट खुला है, सबको अंदर आने दो,
कपट-द्वंद के वाद्ययंत्र पर सबको मंतर गाने दो।
अपनी झांकी आगे रखता, हर शख्स यहां पर नेता है,
भर चातुर्मास परकम्मा करता दिग्गी भी अभिनेता है।
देख लचीलापन खेमों में इनकी नीदें खुलती हैं,
चैन चुनावी बिन सोने की,हीरा भाव में तुलती है।
जनता तो मानो अब ऐसे ही, बिरले घाटों पर मिलती है,
कला निपुणता नेताओं की घर-घर खूंटियों पर टंगती है।
मेजबान ‘रजनीश’ बनाकर ये अपने ही तुमको छोड़ेंगे,
आँख खुली रह जाएगी और ये देश तुम्हारा तोड़ेंगे।
जब तक पन्नों में सरकारी रोजगार न आएगा,
परिस्थिति का काला आलम बेच-बेचकर खाएगा।
हर दिन घुटता ये चुनाव भी थककर इक दिन बोलेगा,
जंतर-मंतर पे ईवीएम संग अनशन मुद्रा में डोलेगा।
बंद करो अब जीत-हार का खेल,यहां पर बंद करो,
एक अवधि में एक जगह पे चुनावी वोटिंग तंत्र करो।
#रजनीश दुबे’धरतीपुत्र'
परिचय : रजनीश दुबे’धरतीपुत्र'
की जन्म तिथि १९ नवम्बर १९९० हैl आपका नौकरी का कार्यस्थल बुधनी स्थित श्री औरोबिन्दो पब्लिक स्कूल इकाई वर्धमान टैक्सटाइल हैl ज्वलंत मुद्दों पर काव्य एवं कथा लेखन में आप कि रुचि है,इसलिए स्वभाव क्रांतिकारी हैl मध्यप्रदेश के के नर्मदापुरम् संभाग के होशंगाबाद जिले के सरस्वती नगर रसूलिया में रहने वाले श्री दुबे का यही उद्देश्य है कि,जब तक जीवन है,तब तक अखंड भारत देश की स्थापना हेतु सक्रिय रहकर लोगों का योगदान और बढ़ाया जाए l
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