एक जन्म से विदा होकर
मानव माँ की कोख में आता है,
माँ की कोख छोड़
फिर दुनिया में कदम रखता है।
फिर कहीं आगमन तो कहीं विदाई
यही सिलसिला चलता रहता है,
माँ का आंचल छोड़
दुनिया का सामना करना पड़ता है।
पलक झपकते ही
बालपन विदा होकर,किशोरावस्था से
निकलकर युवावस्था आ खड़ी होती है,
युवावस्था खूब सपने दिखाती है।
सपने भी कब होते हैं अपने,
शनै-शनै उसकी भी होती रहती है विदाई।
एक घर से,दूसरे घर
एक शहर से,दूसरे शहर
ये जीवन का हिस्सा बन जाता है,
इसी दौड़ में भागते-भागते
प्रौढ़ावस्था से निकलकर
वृद्धावस्था का पदार्पण हो जाता है।
वृद्धावस्था तक आते-आते
इस सिलसिले से थक जाते हैं हम
फिर लेकर विदाई,
पूर्व स्थान प्राप्त करने को
मन आतुर हो जाता है।
कहो,कहाँ नहीं होती विदाई?
जहाँ आगमन है,वहाँ होती विदाई,
आगमन से पहले होती विदाई,
आगमन के बाद भी होती विदाई।।
#पूनम झा
परिचय: पूनम झा राजस्थान के कोटा से हैं l आप ब्लॉग लिखती हैं और फेसबुक पर भी साहित्यिक समूहों में सक्रिय हैं l पुस्तकों,पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ,मुक्तक और लघुकथाएँ इत्यादि प्रकाशित होती रहती हैं l