#सुनील चौरसिया ‘सावन’
कुशीनगर(उत्तर प्रदेश)
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नागराज की भाँति
फुँफकारती हुई यह नदी
पत्थरों को डँसते हुए
पृथ्वी को रौंदते हुए
पर्वतों के बीच से
शान से चली जा रही है
किस मंजिल की तलाश में?
पहाड़ की छाती चीरकर
सदियों से बह रही है
कण-कण से कह रही है –
साँसों का मूल्य समझो
है जीवन अनमोल
प्रगति- पथ पर बढ़ते हुए
जीवन में रस घोल
उसको कौन बढ़ा सकता
जिसने जकड़ लिया है किनारा
उसको कौन रोक सकता है
जो बन गया है धारा
नदी में
जीवन का संगीत है
या मृत्यु की निनाद
हर्ष है, संघर्ष है
या मन में अवसाद
हमारी अपनी दृष्टि है
नदी एक सृष्टि है।
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