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दिल से
क्या खता हो गई हमसे,
कर दिया बेसहारा
घर छोड़कर निकले थे हमारा,
तन्हाई में यूँ सफर कटता नहीं
दे गए गम बहुत सारा।
प्यार की नजाकत को
समझ पाते गर तुम,
टूटता नहीं ये रिश्ता प्यारा।
शाम ढलने को है
चांद निकलने को,
मुलाकात होगी बनकर तारा।
टूटकर गिरुंगा,
तभी समझोगे तुम इश्क हमारा।
गर चाहो कुछ मांगना
तो मांगना टूटते समय,
दोनों आँखें बंद करके
दे जाएंगे बहुत कुछ
जो बनेगा तुम्हारा सहारा॥
#अजय जयहरि
परिचय : अजय जयहरि का निवास कोटा स्थित रामगंज मंडी में है। पेशे से शिक्षक श्री जयहरि की जन्मतिथि १८ अगस्त १९८५ है। स्नात्कोत्तर तक शिक्षा हासिल की है। विधा-कविता,नाटक है,साथ ही मंच पर काव्य पाठ भी करते हैं। आपकी रचनाओं में ओज,हास्य रस और शैली छायावादी की झलक है। कई पत्र-पत्रिकाओं में कविताओं का प्रकाशन होता रहता है।
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Tue Sep 12 , 2017
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