
सुबह सुबह तुम श्रंगार सजा कर,
कोमल फूलों को क्यों चुनती हो।
शुर्ख गुलाबी साड़ी में तुम युवती,
फूलों से ज्यादा कोमल लगती हो।
सँभल सँभल कर तुम चुनना ,
इन नन्हे नन्हे कोमल फूलों को।
पौधा भी जलता तुमसे सोना,
ध्यान तुम्हें है रखना आहत न हो।
एक बात जरा तुम बतलाओ,
इतनी उत्सुकता क्यों तुम में ।
या प्रेमी की कथा कहो युवती,
जो हो सारी व्यथा कहो युवती।
क्या तुम्हें बताऊँ प्यारे पथिक,
सालों साल बाद आज उनकी,
अगवानी है अपने देश पथिक,
फूलों से राह सजाऊँगी उनकी।
बस प्रेम कथा का सार है अपना,
बरसों से मैं तरस रही हूँ पथिक,
आज अचानक प्रेम आया अपना,
बस इसी उत्सुकता में हूँ पथिक।
आज का मौसम और भी प्यारा,
बादल की घनघोर घटाएँ छाई,
शायद यह लाई सन्देश काली घटा ,
फिर लौट आया अपने देश पिया।
#विपिन कुमार मौर्या