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कुछ अस्त-व्यस्त-सी है नज़र आती है ज़िन्दगी,
कभी समेटने लगो तो और उलझ जाती है ज़िन्दगी।
कभी खामोश रहकर सब सहकर घुटन हो जाए;
बिंदास जिएं, न पल-पल मरें समझाती है ज़िन्दगी।
मुसाफिर-सा मन कभी बंधना चाहे इसमें मर्ज़ी से;
कभी ख्बाबों के पँख लगा हमें लुभाती है ज़िन्दगी।
#कामनी गुप्ता
परिचय : कामनी गुप्ता जम्मू से हैं और एमएससी(गणित) किया हैl लिखना इनका शौक है,अभी तक छ: साझा संग्रह में शामिल हैं। दीपशिखा,सहोदरी सोपान,सत्यम प्रभात तथा महकते लफ्ज़ आदि इसमें प्रमुख हैंl विभिन्न समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में कविता,ग़ज़ल और कहानी प्रकाशित होती हैं। निरंतर सीखने को ही यह लिखने की सफलता मानती हैंl
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Thu Aug 31 , 2017
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