कुछ अस्त-व्यस्त-सी है नज़र आती है ज़िन्दगी, कभी समेटने लगो तो और उलझ जाती है ज़िन्दगी। कभी खामोश रहकर सब सहकर घुटन हो जाए; बिंदास जिएं, न पल-पल मरें समझाती है ज़िन्दगी। मुसाफिर-सा मन कभी बंधना चाहे इसमें मर्ज़ी से; कभी ख्बाबों के पँख लगा हमें लुभाती है ज़िन्दगी। […]