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ज़ख़्मों के उठे दर्द छुपाने नहीं आते।
बिन बात यूँ हँसने के बहाने नहीं आते॥
हम जो भी हैं, जैसे भी हैं, है सामने तेरे।
चेहरे पे नए चेहरे लगाने नहीं आते॥
हर शाम बिताता हूँ मैं तन्हाइयों के संग।
बैठक में मेरे यार पुराने नहीं आते॥
इक बार ले उधार गए घर से जो मेरे।
वापिस कभी वो शक्ल दिखाने नहीं आते॥
जब से गया घर से मैं, है छत मेरी गुमसुम।
अब छत से कोई बातें बताने नहीं आते॥
हर रोज जगाती है घड़ी मुझको फिक्र की।
आँखों में अब वो सपने सुहाने नहीं आते॥
मैं कैसे कहूँ उनको कि, वो मुर्दा नहीं है।
जलते हुए घर को जो बुझाने नहीं आते॥
#सुमित अग्रवाल
परिचय : सुमित अग्रवाल 1984 में सिवनी (चक्की खमरिया) में जन्मे हैं। नोएडा में वरिष्ठ अभियंता के पद पर कार्यरत श्री अग्रवाल लेखन में अब तक हास्य व्यंग्य,कविता,ग़ज़ल के साथ ही ग्रामीण अंचल के गीत भी लिख चुके हैं। इन्हें कविताओं से बचपन में ही प्यार हो गया था। तब से ही इनकी हमसफ़र भी कविताएँ हैं।
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