
सब धर्मों के आसन पर
ढोंगी पाखण्डी रख डाले,
देवों के सिंहासन पर l
चोर,उचक्के,गुण्डे सब,
धर्मों के ठेकेदार बने
जैसे भूखे भेड़िए,
बकरी के पहरेदार बने l
जैसे कोई डाकू,
सत्ता को हथियाता है
जैसे जिलाधीश को
सिपाही आंख दिखाता है l
जैसे श्रीराम को भी,
कोई हैवान बताता है
वैसे ही शैतानों को,
हमने भगवान बनाया है l
भगवा चोलों के पीछे,
हम धर्म संभाले बैठे हैं
पाक में नहीं आतंकी,
हम घर में पाले बैठे हैं l
जैसे हवा के झोंके से,
कोई पत्ता बलखाता है
वैसे ही सिर हमारा,
हर बाबा को झुक जाता है l
अंधविश्वास की काली पटटी,
हट जाए तो अच्छा है
ऐसे बाबा को झुकने से,
यह सिर कट जाए तो अच्छा है ll
परिचय: अंकित दीप कश्यप की शिक्षा वर्तमान में एमए जारी है। आपकी जन्मतिथि-१५ मार्च १९९७ और जन्म स्थान-मुजफ्फरनगर है। आप शहर-मुजफ्फरनगर(उत्तर प्रदेश)में ही रहते हैं। कार्यक्षेत्र-मुजफ्फरनगर में ही कम्प्यूटर अॉपरेटर हैं। विधा-ग़ज़ल,कविता (तुकान्त-अतुकान्त)है। एक साहित्यिक संस्था के वार्षिक संकलन में रचनाछपी है। कुछ क्षेत्रीय सम्मेलनों में भाग लिया है। आपके लेखन का उद्देश्य-मानव व्यवहार में निरन्तर बढ़ते छल तथा सामाजिक बुराईयों पर चोट करना है।