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ख़ामोशी भी क्या गजब ढाने लगी।
लब है चुप पर आँखें चिल्लाने लगी॥
है हवाओं में घुला कैसा जहर।
साँस चलने से भी घबराने लगी॥
ज़ुल्म भी अब आ चुका अंजाम तक।
सिसकियाँ अब ज़ोर दिखलाने लगी॥
आँखों से तेरी जो कुछ बूँदें गिरी।
बन लहर वो मुझ से टकराने लगी॥
यूं ‘सुमित’ बन के न तुम मीठे रहो।
चीटियाँ तिल-तिल तुम्हें खाने लगी॥
#सुमित अग्रवाल
परिचय : सुमित अग्रवाल 1984 में सिवनी (चक्की खमरिया) में जन्मे हैं। नोएडा में वरिष्ठ अभियंता के पद पर कार्यरत श्री अग्रवाल लेखन में अब तक हास्य व्यंग्य,कविता,ग़ज़ल के साथ ही ग्रामीण अंचल के गीत भी लिख चुके हैं। इन्हें कविताओं से बचपन में ही प्यार हो गया था। तब से ही इनकी हमसफ़र भी कविताएँ हैं।
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