यादें बचपन की…

1
0 0
Read Time1 Minute, 46 Second
sunil patel
कम्बख्त ये ज़िन्दगी भी कितने दर्द देती है,
कभी भूले तो कभी बिछड़े देती है।
 
 
बचपन में यारों की पीठ पीछे खिलौने देती थी,
अब तो पीठ पीछे यारों के हाथों में ख़ंजर देती है।
 
 
बचपन में गुड्डे-गुड़ियों की शादी में नाचते थे,
अब तो मालिक के इशारों पर नाचते हैं हम।
 
 
बचपन में चुटकियों में तिनकों के आशियाने बना लेते थे,
अब तो बस आशियाना चलाने के लिए दर-दर भटकते हैं हम।
 
 
बचपन में कस्मे-वादे निभाने को सब कुछ छोड़ आया करते थे,
अब तो लोगों को लुभाने के लिए झूठी कसमें खाते हैं हम।
 
 
कम्बख्त ये ज़िन्दगी भी कितने दर्द देती है,
बस पहचान नहीं पाते हैं हम…l 
 
 
बचपन में नंगे पैर मीलों दोस्तों के संग चले जाते थे,
अब तो कुछ दूर भी किसी के साथ चल नहीं पाते हैं हम।
 
 
न जाने कैसे बीत गया वो बचपन,कहां चले गए वो सब,
यादे तो बहुत-सी मगर,अब कहां किसी को याद आते हैं हम।
 
 
बहुत कुछ दिया तूने ऐ ज़िन्दगी,दरख़्वास्त इक करते हैं,
इसी रफ़्तार से पीछे ले चल,फिर बचपन जीना चाहते हैं हम ll 
                                                                #सुनील रमेशचंद्र पटेल
परिचय : सुनील रमेशचंद्र पटेल  इंदौर(मध्यप्रदेश ) में बंगाली कॉलोनी में रहते हैंl आपको  काव्य विधा से बहुत लगाव हैl उम्र 23 वर्ष है और वर्तमान में पत्रकारिता पढ़ रहे हैंl 

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

One thought on “यादें बचपन की…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

पौधे की पुकार

Sat Aug 19 , 2017
अगर मैं पेड़ बन जाता तो, कितना अच्छा होता। खड़ा-खड़ा लहराता, और सबको हवा देता। मेरे फूल महकते, स्वादिष्ट फल तुम खाते। मैं लोगों को छाया देता, राहगीर राहत पाते। मेरे कारण बारिश होती, फसलें खेतों में लहराती। मैं तुमको जीवन देता हूं, और तुम मुझे ही काट डालते॥   […]

नया नया

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष, ख़बर हलचल न्यूज़, मातृभाषा डॉट कॉम व साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। साथ ही लगभग दो दशकों से हिन्दी पत्रकारिता में सक्रिय डॉ. जैन के नेतृत्व में पत्रकारिता के उन्नयन के लिए भी कई अभियान चलाए गए। आप 29 अप्रैल को जन्में तथा कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएच.डी की उपाधि प्राप्त की। डॉ. अर्पण जैन ने 30 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण आपको विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन द्वारा वर्ष 2020 के अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से डॉ. अर्पण जैन पुरस्कृत हुए हैं। साथ ही, आपको वर्ष 2023 में जम्मू कश्मीर साहित्य एवं कला अकादमी व वादीज़ हिन्दी शिक्षा समिति ने अक्षर सम्मान व वर्ष 2024 में प्रभासाक्षी द्वारा हिन्दी सेवा सम्मान से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं, साथ ही लगातार समाज सेवा कार्यों में भी सक्रिय सहभागिता रखते हैं। कई दैनिक, साप्ताहिक समाचार पत्रों व न्यूज़ चैनल में आपने सेवाएँ दी है। साथ ही, भारतभर में आपने हज़ारों पत्रकारों को संगठित कर पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग को लेकर आंदोलन भी चलाया है।