अमीर गिन रहा नोट यहाँ,
हाथ मले किसान।
वीआईपी सोए मखमल पे,
किसान बांधे खेत मचान।।
रात को जागत दिन को भागत,
खेतन करे किलोल।
खून पसीना बहा दिया,
आखिर नहीं मिले उचित मोल।।
सपने लाख सजा लिए,
ले फसल गए बजरिया की ओर।
दाम मिला कम मिला,
फिर भी किया संतोष।।
राशन के, दवाई के पैसे
दिए चुकाए।
घर पहुँचे जब तलक,
बिजली बाले आँगन आए।।
बचा-कुचा सब दे दिया,
हाथ नहीं रहा इक लाल।
कहत किशन बा-सुन भाई मालिक,
अब तो बस अगले बरस की आस।।
दूसरे बरस भगवान ने,
फसल दी बिगाड़।
खून के आंसू रो रहा अब,
देखो जग का पालनहार।।
बैठे भूख से बिलख जाते, ये देख किसान आधे मर जाते।
बाकी कमी नेता जी पूरी कर गए,
जब 200 रु. बीघा हाथ में धर गए।।
बंद करो ठिठोली किसान से,
ये जग का पालनहार है।
कुछ सहयोग दो इसे,
इसकी मेहनत अपरम्पार है।।
#सुनील विश्वकर्मा
परिचय : सुनील विश्वकर्मा मध्यप्रदेश के छोटे गांव महुआखेड़ा (जिला गुना) के निवासी हैं। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा अपने गांव एवं बाद की इंदौर से (स्नातकोत्तर)प्राप्त की है। आप लिखने का शौक रखते हैं।वर्तमान में इंदौर में प्राइवेट नौकरी में कार्यरत हैं।