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परम पुनीता पावन बंधन, प्रिय प्राणों से ज्यादा,
बहना माँग रही है मुझसे, निज रक्षा का वादा।
थाल सजाकर लाई बहना, दीपक मधुर जलाया,
और भाल पर उसने मेरे, कुंकुम तिलक लगाया।
नख-शिख तक फिर करी आरती, मंगल रहा इरादा,
बहना मांग रही है मुझसे, निज रक्षा का वादा।
केशरिया घेवर से उसने, मुझको भोग लगाया,
रक्षासूत्र लिए बहना ने, अपना हाथ बढ़ाया।
राखी तो बंधवा ली मैंने, पर आँख सजल हो आई,
कोटि-कोटि बहनों की छवि जब, हृदय पटल पर छाई।
इसकी रक्षा तो मैं अपनी, जान लगाकर कर दूँगा,
इसकी झोली में मैं जग की, सारी खुशियाँ भर दूँगा।
किंतु आज जो बहनें मेरी, संतापों को झेल रही हैं,
डरी-डरी-सी सहमी-सहमी, अपराध भाव से खेल रही हैं।
भूख गरीबी शिक्षा का तो, हरगिज नहीं ठिकाना,
और दरिंदों से फिर हर दिन, अपनी लाज बचाना।
उनके रक्षण का सब मिलकर, कर लें आज इरादा,
संकल्पों की राखी बाँधें, फिर यही करें हम वादा॥
#ओम अग्रवाल ‘बबुआ’
परिचय: ओमप्रकाश अग्रवाल का साहित्यिक उपनाम ‘बबुआ’ है। मूल तो राजस्थान का झूंझनू जिला और मारवाड़ी वैश्य हैं,परन्तु लगभग ७० वर्षों पूर्व परिवार यू़.पी. के प्रतापगढ़ जिले में आकर बस गया था। आपका जन्म १९६२ में प्रतापगढ़ में और शिक्षा दीक्षा-बी.कॉम. भी वहीं हुई। वर्तमान में मुंबई में स्थाई रूप से सपरिवार निवासरत हैं। संस्कार,परंपरा,नैतिक और मानवीय मूल्यों के प्रति सजग व आस्थावान तथा देश धरा से अपने प्राणों से ज्यादा प्यार है। ४० वर्षों से लिख रहे हैं। लगभग सभी विधाओं(गीत,ग़ज़ल,दोहा,चौपाई, छंद आदि)में लिखते हैं,परन्तु काव्य सृजन के साहित्यिक व्याकरण की न कभी औपचारिक शिक्षा ली,न ही मात्रा विधान आदि का तकनीकी ज्ञान है।
काव्य आपका शौक है,पेशा नहीं,इसलिए यदा-कदा ही कवि मित्रों के विशेष अनुरोध पर मंचों पर जाते हैं। लगभग २००० से अधिक रचनाएं लिखी होंगी,जिसमें से लगभग ७०० के करीब का शीघ्र ही पाँच खण्डों मे प्रकाशन होगा। स्थानीय स्तर पर ढेरों बार सम्मानित और पुरस्कृत होते रहे हैं।
आजीविका की दृष्टि से बैंगलोर की निजी बड़ी कम्पनी में विपणन प्रबंधक (वरिष्ठ) के पद पर कार्यरत हैं।
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