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गूँज उठी कानों में,
अजन्मी बेटी की आवाज।
एक बार तो बतादो ना,
मुझको मारने का राज॥
क्या? खता हुई मुझसे,
या हो गई मुझसे नादानी।
अपने होकर क्यों? कर रहे,
हो मेरी खतम कहानी।
हाथ जोड़ विनती करती,
सुन लो दिल की आवाज।
गूंज उठा कानों में……॥
मैं तुम्हारा प्यार हूँ,
बहती जो रगों में लहू की धार हूँ।
कैसे? माना तुमने,
बेटे के आगे में निराधार हूँ।
खिलने दो मुझे चमन में,
हूँ प्यार की मोहताज।
गूंज उठा कानों में..…..॥
जाग उठी अंतरात्मा,
पड़ी जब बेटी की अनुगूँज।
घर आँगन में जल उठा,
फिर प्रकाश का नव पुंज।
आज वही है पर मेरी,
उसी से है मेरी परवाज।
गूंज उठा कानों में……॥
#दशरथदास बैरागी
Dr.dmasania @gmail.com