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(श्री गोस्वामी तुलसीदास जयन्ती)
मोह रहे जनमानस को,
कह राम-कथा तुलसी सु विरागी।
देव-अदेव सभी नत हैं,
महिमा सुनि प्रीति सदा उर जागी।
राघव-प्रीति कृपा करुणा,
बिन जीवित हैं हत आह! अभागी।
श्री हरि रूप अनूप धरे,
हरते हर पीर व्रती बन त्यागी॥
आँगन की तुलसी हरषी,
तुलसी-रचना जब मानस लागी।
धन्य हुआ जग का तृण भी,
यह प्राण पुनीत हुए बड़भागी।
रामसिया रटती रसना,
रचती नित नूतनता मनपागी।
पाकर पावन सृष्टि हुई,
तुमसा कविराज महा अनुरागी॥
#शुभा शुक्ला मिश्रा ‘अधर’
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