ह्रदय को वो चाहे जितना समझा ले,
फिर भी तो उसको थोड़ा दुःख होगा।
देखकर हाथों की गीली मेहँदी को,
आज स्वयं उसका मुख भी बेमुख होगाll
कंधे पर जो हाथ कभी रखती थी वो,
हरी सौ चूड़ियों से कल भर जाएगा।
चढ़ा हुआ जो आंख तलक एक आँसू,
छोड़ नयन को वो भी अब गिर जाएगाll
पहनकर लाल रेशमी जब वो जोड़ा,
श्रृंगार सोलहवां कर रूप सँवर आएगी।
देखकर सौन्दर्य आज उस दुल्हन का,
ये रात चांदनी भी कुछ शर्म जाएगीll
झनक-झनक कर पायल भी जब उसकी,
धुन छेड़ कर ये बिछड़न राग सुनाएगी।
सुनकर गीत स्वयं की पायल के मुख से,
सुप्त स्मृतियाँ ह्रदय में घर कर जाएंगीll
भरा मांग में उसकी जो सिंदूर ये देखो,
आज पवित्रता उसकी और बढ़ाएगा।
सृजन किया है जीवन भर जिन रिश्तों का,
रूप परिवर्तित उनका ये कर गाएगा ll
लगी हुई बिंदिया ये चाँद के मस्तक पर,
किसी के प्रति ये समर्पण को दर्शाती है।
हुआ अधिकृत ये सब तन-मन भी उसका,
सात जन्मों की रूप-रेखा समझाती हैll
नई सुबह की नई किरण में वो आज,
तोड़ वादों को कर लेगी स्वयं विदाई।
चलना ही है इस चलनमय जीवन को,
उसने भी इस संसार की रस्म निभाईll
करता हूँ अब अंतिम अधिकार समर्पित,
याद नही मैं अब उसको कर पाऊंगा।
मर्म छुपा लूँगा दिल में,सच कहता हूँ,
अब मैं नही किसी को बतलाऊँगाll
#हिमांशु मित्रा’रवि’
परिचय: हिमांशु मित्रा उत्तरप्रदेश राज्य के शिवपुरी (लखीमपुर खीरी) में रहते हैंl आपकी उम्र २० वर्ष तथा स्नातक उत्तीर्ण हैंl आप हिन्दी में लिखने का शौक रखते हैंl