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सावन की घटाएँ,
जैसे गौरी की अदाएं।
पहले गरजती है,
फिर वो चमकती है।
घनघोर घटाएँ,
फिर वो बरसती है।
किसी के दिल को,
ठंडक पहुँचाती है।
पिया बिन गौरी के,
दिल को जलाती है।
पानी में भीग-भीग,
तन जो हो गीला।
मन मचल जाए,
झूले जब झूला।
ठंडी ये हवाएं,
बदन चूम जाएं।
सिहरन-सी मन में,
भर के चली जाए।
दिल मचल जाए,
आग-सी लगाए।
पिया की याद में,
तड़प-तड़प जाए।
सावन की घटाएँ,
जब बरस-बरस जाएं।
पानी बिन प्यासा,
सारा जहाँ है।
पिया बिन गोरी का,
तड़पता जिया है।
दिन तो गुजर जाता है,
रातें नहीं कटती हैं।
ठंडी ये हवाएँ,
बदन चूमती है।
पिया बिन मोरे
बदन से खेलती है।
सावन की घटाएँ,
ऐसे मोहे तड़पाएँ।
क्या करुं,कैसे ये,
दिल को समझाऊँ॥
#अनन्तराम चौबे
परिचय : अनन्तराम चौबे मध्यप्रदेश के जबलपुर में रहते हैं। इस कविता को इन्होंने अपनी माँ के दुनिया से जाने के दो दिन पहले लिखा था।लेखन के क्षेत्र में आपका नाम सक्रिय और पहचान का मोहताज नहीं है। इनकी रचनाएँ समाचार पत्रों में प्रकाशित होती रहती हैं।साथ ही मंचों से भी कविताएँ पढ़ते हैं।श्री चौबे का साहित्य सफरनामा देखें तो,1952 में जन्मे हैं।बड़ी देवरी कला(सागर, म. प्र.) से रेलवे सुरक्षा बल (जबलपुर) और यहाँ से फरवरी 2012 मे आपने लेखन क्षेत्र में प्रवेश किया है।लेखन में अब तक हास्य व्यंग्य, कविता, कहानी, उपन्यास के साथ ही बुन्देली कविता-गीत भी लिखे हैं। दैनिक अखबारों-पत्रिकाओं में भी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। काव्य संग्रह ‘मौसम के रंग’ प्रकाशित हो चुका है तो,दो काव्य संग्रह शीघ्र ही प्रकाशित होंगे। जबलपुर विश्वविद्यालय ने भीआपको सम्मानित किया है।
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Mon Jul 24 , 2017
मैं हूँ सपनों का सौदागर, स्वप्न बेचता हूँ बेचता हूँ,आशाएँ उम्मीदें,अभिलाषाएँ छुपाकर सभी दाग, दिखाकर सब्ज़बाग एक भ्रमजाल बुनता हूँ। मैं हूँ सपनों का सौदागर, स्वप्न बेचता हूँ…………॥ दिखाकर भंगिमाएँ, कर कपोल कल्पनाएँ मिथ्या बुनियादों पर, हवाई किला बनाकर यादें सहेजता हूँ। मैं हूँ सपनों का सौदागर, स्वप्न बेचता हूँ…………॥ […]