प्राकृतिक सौंदर्य और मनुष्य का बढ़ता फासला…

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anita mishra
हमारे आस-पास सब कुछ प्रकृति है,जो बहुत खूबसूरत पर्यावरण से घिरी हुई है। हम हर पल इसे देख सकते हैं और इसका आनंद उठा सकते हैं। हम हर जगह इसमें प्राकृतिक बदलावों को देखते,सुनते और महसूस करते हैं। हमें इसका पूरा फायदा उठाते हुए शुद्ध हवा के लिए रोज सुबह की सैर करने के बहाने घर से बाहर जाना चाहिए, तथा प्रकृति की सुबह की सुंदरता का आनन्द उठाना चाहिए। हालाँकि,सूर्योदय के साथ ये दिन में नारंगी और सूर्यास्त होने के दौरान ये पीले रंग-सा हो जाता है। थोड़ा और समय बीतने के साथ ही काली रात का रुप ले लेता है।
आज मानव घर में ही घुटकर रह जाता है। नेट-टीवी और सोशल मीडिया ने जकड़ रखा है लोगों को, इसलिए
वो प्रकृति से दूर हो गए हैं। हमें प्रकृति के नजदीक जाना होगा। धरा भी धानी है,आसमान का रंग नीला है। रंग-बिरंगे फूल हैं,पेड़ों पर पंछी गाते हैं,यह महसूस करना होगा।
प्रकृति के पास हमारे लिए सब कुछ है, लेकिन हमारे पास उसके लिए कुछ नहीं है,बल्कि हम उसकी दी गई संपत्ति को अपने निजी स्वार्थों के लिए दिनों-दिन बरबाद कर रहे हैं। आज के आधुनिक तकनीकी युग में रोज बहुत सारे आविष्कार हो रहे हैं जिसका हमारी पृथ्वी के प्रति फायदे-नुकसान के बारे में नहीं सोचा जा रहा है। धरती पर हमेशा जीवन के अस्तित्व को संभव बनाने के लिए हमारी प्रकृति द्वारा प्रद्त्त संपत्ति के गिरते स्तर को बचाने की जिम्मेदारी हमारी है। अगर हम लोग अपनी कुदरत को बचाने के लिए अभी भी कोई कदम नहीं उठाते हैं,तो ये हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए खतरा उत्पन्न कर देगा। हमें इसके महत्व और कीमत को समझना चाहिए,इसके वास्तविक स्वरुप को बनाए रखने की कोशिश करनी चाहिए। प्रकृति से प्यार करें,तभी हम फासला घटा सकते हैं। हम प्रकृति को हरा-भरा रखें, पेड़ लगाएं,वृक्ष बचाएं, तभी तो प्रकृति आगे भी संरक्षित रहेगी। अपने जीवन को स्वस्थ बनाने के लिए हमें प्रकृति से जुड़ना ही होगा।                                                                                              #अनीता मिश्रा

परिचय  : अनीता मिश्रा का जन्म स्थान बिहार है और आपकी शिक्षा बॉटनी से है। हिन्दी साहित्य के साथ ही भोजपुरी में भी लेखन करती हैं। किताबेंं पढ़ना,लिखना आपकी पसंद है। गरीबों की मदद करने के लिए आप कई संस्थाओं से जुड़ी हैं। कुछ साहित्यिक संस्थाओं में सदस्य और अध्यक्ष भी हैं। कई कविताएँ और साझा संकलन छप चुके हैं। सम्मान में साहित्य सागर सम्मान, सहोदरी सम्मान और श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान भी हासिल हुआ है। कई पत्र-पत्रिकाओं में कहानी,लेख,संस्मरण भी लिखती हैं। वर्तमान में हजारीबाग
(झारखंड)में बसी हुई हैं।

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।