भारतीय उपमहाद्वीप में मालद्वीप का अपना स्थान है।हिन्द महासागर के किनारे पर बसा यह लघु देश अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण सभी के लिए हर तरह से महत्वपूर्ण है।भारत का निकटतम पड़ोसी है।भारत के दक्षिण भारतीय राजा रहे हों या समा्रट अशोक के समय बौद्व धर्म का प्रचार प्रसार इस देश से सांस्कृतिक धार्मिक और वैचारिक जुड़ाव रहा है।बात चाहें पहले की हो या आज की भारत ने मालद्वीप के लिए हर तरह से सदा महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।1988 में बाहरी हमला हो या सुनामी जैसी कुदरती आपदा या पीने के पानी की कमी भारत हमेशा इस देश के साथ खड़ा रहा है।भारत ने एक बार फिर यह दोहराया है कि भारत की जनता साथ थी है और आगे भी रहेगी यह बात प्रधानमंत्री ने मालद्वीप की संसद को सम्बोधित करते हुए साफ कर दी।मालद्वीप के द्वारा अपना सर्वोच्च सम्मान भारत के प्रधानमंत्री को देना बड़ा ही महत्वपूर्ण हो जाता है।उसके बाद मालद्वीप की संसद में प्रधानमंत्री का सम्बोधन इस बात का प्रतीक है कि मालद्वीप के लोगों वहां के शासक वर्ग में भारत का क्या स्थान है।कम आबादी वाले और पूर्णतया पर्यटन पर आधारित अर्थव्यवस्था वाले इस देश में वर्तमान में भारतीयों की संख्या लगभग 25 हजार है।जोकि यहां पर हर क्षेत्र में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।ऊपर से भारत का रूपे कार्ड लागू हो जाना बड़ा लाभकारी सिद्ध हो रहा है।
2004 में आयी भयंकर सुनामी ने यहां पर काफी नुकसान किया था।कई द्वीप बिल्कुल तबाह हो गये थे केवल नौ ही बचे थे जबकि सत्तावन द्वीपों को हल्की चौदह को पूर्णतया क्षति पहुंची थी। एक अनुमान के अनुसार इस देश की कुल अर्थव्यवस्था के 62 प्रतिशत के बराबर नुकसान हो गया था।कहते हैं यहां लगभग 14 फीट तक की ऊंची लहरें आयी थीं जिनके लिए कोई रुकावट न होने से भारी नुकसान कर गयीं।पर धीरे धीरे इस देश ने अपने संसाधनों और दूसरे देशों व संयुक्तराष्ट्र के सहयोग से अपने आपको संभाल लिया है।आज मानव विकास सूचकांक मध्यम स्तर से कुछ अधिक पर पहुंच गया है।सकल घरेलू उत्पाद लगभग 08 करोड बिलियन डालर है।प्रतिव्यक्ति आय 20 हजार डालर से अधिक हो गयी है।कुल मिलाकर यह देश अपनी अर्थव्यवस्था में सुधार की दिशा में आगे बढ़ रहा है और भारत जैसे मजबूत पड़ोसी देश की सहायता इसके आधार भूत ढांचें को और सुदृढ़ता प्रदान करेगी।भारत से इसको सदैव उम्मीद रही है।।कर्ज के मामलों में भारत कई बार इसके साथ खड़ा हुआ है।इससे पहले डा. मनमोहन सिंह ने 2011 में इस देश की प्रधानमंत्री के रूप में यात्रा की थी।
अपने दूसरे कार्यकाल में मोदी जी ने विदेश यात्रा में पहला देश मालद्वीप को चुना इसके पीछे दक्षिण की राजनीति और ठण्डे पड़े पड़ोसी से रिश्ते को नये गरमी देने के साथ साथ क्षेत्र को सन्देश भी देना था।उन्होंने अपने भाषण का आरम्भ करते हुए कहा कि हमारे देशों ने कुछ दिन पहले ही ईद का त्यौहार हर्ष और उल्लास के साथ मनाया है मेरी शुभकामनाएं हैं कि इस पर्व का प्रकाश हमारे नागरिकों के जीवन को हमेशा आलोकित करता रहे।इससे उन्होंने पूरे क्षेत्र के मुस्लिमों को सन्देश दिया।इसके बाद उन्होंने पिछले कुछ सालों की मालद्वीप की नीति और चीन की ओर झुकाव पर कटाक्ष करते हुए कहा कि राष्ट्रपति सोलिह आपके पद ग्रहण करने के बाद से द्विपक्षीय सहयोग की गति और दिशा में मौलिक बदलाव आया है।यह वाक्य चीन और मालद्वीप दोनों के लिए सीधा सन्देश था क्योंकि इस देश ने 2013 से 2018 तक भारत को अनदेखा कर चीन से अरबों डालर के समझौते किये।इन समझौतों में से एक से बने पुल को नजरअन्दाज कर प्रधानमंत्री स्पीड वोट से माले पहुंचे।
प्रधानमंत्री ने अपनी इस यात्रा से अन्तर्राष्ट्रीय जगत को यह दिखाने की कोशिश की भारत अपने पड़ोसियों के साथ खड़ा है।उनको आगे बढ़ाने को तत्पर है इस क्रम में प्रधानमंत्री ने यहां की जामा मस्जिद के पुनर्निर्माण कोच्चि और माले के बीच 2011 से ठण्डे बस्ते में पड़ी पैसेंजर को पुनः चालू करने की घोषणा की।हर मंच की तरह माले में भी प्रधानमंत्री ने आतंकवाद का मुद्दा उठाया और अच्छे और बुरे आतंकवाद की परिभाषा करने वालों को आड़े हाथों लिया।श्रीलंका में चर्चों पर हुए सिलसिलेबार हमलों के बाद एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की।
छोटे से देश मालद्वीप में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी की डेढ़ दिन यात्रा उनको मिले रूल आफ निशन इज्जुद्दीन देश का सर्वोच्च सम्मान इस देश को भारत के सहयोग से नयी दिशा देने व विकास की गति बढ़ाने में समर्थ होगा इसके पर्यटन उद्योग को काफी बढ़ावा मिलेगा।क्योंकि दक्षिण आने वाले काफी पर्यटक मालद्वीप अवश्य जाते हैं।उसको सदा की भांति विकास और स्थिरता देगा।द्विपक्षीय सम्बन्धों को मजबूती देगा।मोदी की पहले पड़ोसी नीति असर दिखायेगी ऐसा विश्वास है।
#शशांक मिश्र
परिचय:शशांक मिश्र का साहित्यिक नाम `भारती` और जन्मतिथि १४ मई १९७३ है। इनका जन्मस्थान मुरछा-शहर शाहजहांपुर(उत्तरप्रदेश) है। वर्तमान में बड़ागांव के हिन्दी सदन (शाहजहांपुर)में रहते हैं। भारती की शिक्ष-एम.ए. (हिन्दी,संस्कृत व भूगोल) सहित विद्यावाचस्पति-द्वय,विद्यासागर,बी.एड.एवं सी.आई.जी. भी है। आप कार्यक्षेत्र के तौर पर संस्कृत राजकीय महाविद्यालय (उत्तराखण्ड) में प्रवक्ता हैं। सामाजिक क्षेत्र-में पर्यावरण,पल्स पोलियो उन्मूलन के लिए कार्य करने के अलावा हिन्दी में सर्वाधिक अंक लाने वाले छात्र-छात्राओं को नकद सहित अन्य सम्मान भी दिया है। १९९१ से लगभग सभी विधाओं में लिखना जारी है। श्री मिश्र की कई पुस्तकें प्रकाशित हैं। इसमें उल्लेखनीय नाम-हम बच्चे(बाल गीत संग्रह २००१),पर्यावरण की कविताएं(२००४),बिना बिचारे का फल (२००६),मुखिया का चुनाव(बालकथा संग्रह-२०१०) और माध्यमिक शिक्षा और मैं(निबन्ध २०१५) आदि हैं। आपके खाते में संपादित कृतियाँ भी हैं,जिसमें बाल साहित्यांक,काव्य संकलन,कविता संचयन-२००७ और अभा कविता संचयन २०१० आदि हैं। सम्मान के रूप में आपको करीब ३० संस्थाओं ने सम्मानित किया है तो नई दिल्ली में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर वरिष्ठ वर्ग निबन्ध प्रतियोगिता में तृतीय पुरस्कार-१९९६ भी मिला है। ऐसे ही हरियाणा द्वारा आयोजित तीसरी अ.भा.हाइकु प्रतियोगिता २००३ में प्रथम स्थान,लघुकथा प्रतियोगिता २००८ में सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुति सम्मान, अ.भा.लघुकथा प्रति.में सराहनीय पुरस्कार के साथ ही विद्यालयी शिक्षा विभाग(उत्तराखण्ड)द्वारा दीनदयाल शैक्षिक उत्कृष्टता पुरस्कार-२०१० और अ.भा.लघुकथा प्रतियोगिता २०११ में सांत्वना पुरस्कार भी दिया गया है। आप ब्लॉग पर भी सक्रिय हैं। आप अपनी उपलब्धि पुस्तकालयों व जरूरतमन्दों को उपयोगी पुस्तकें निःशुल्क उपलब्ध करानाही मानते हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-समाज तथा देशहित में कुछ करना है।