बदरा छाए सावन के

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vivek
बदरा छाए सावन के,
लाए संदेशा साजन के।
बरसे रिमझिम-रिमझिम,
छू रहे तेरे भींगे आँचल से।
छाए बादल काले-काले,
तेरे नयनों के काजल से।
झूम उठा मस्त पवन संग,
तेरी कोमल छुअन सिरहन से।
दूर कहीं बिजुरी चमकी,
तेरे अधरन की फड़कन-सी।
अल्हड़ नीर भरी नदियाँ सब,
तेरे मदमाते अल्हड़ यौवन-सी।
रातें गहरी काली-काली,
तेरी गहरी जुल्फें नागिन-सी।
     फिर तेरी यादों संग,
    ‘विवेक’ आया फिर सावन॥

                                                                                       #विवेक दुबे

परिचय : दवा व्यवसाय के साथ ही विवेक दुबे अच्छा लेखन भी करने में सक्रिय हैं। स्नातकोत्तर और आयुर्वेद रत्न होकर आप रायसेन(मध्यप्रदेश) में रहते हैं। आपको लेखनी की बदौलत २०१२ में ‘युवा सृजन धर्मिता अलंकरण’ प्राप्त हुआ है। निरन्तर रचनाओं का प्रकाशन जारी है। लेखन आपकी विरासत है,क्योंकि पिता बद्री प्रसाद दुबे कवि हैं। उनसे प्रेरणा पाकर कलम थामी जो काम के साथ शौक के रुप में चल रही है। आप ब्लॉग पर भी सक्रिय हैं।

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