Read Time2 Minute, 41 Second
मेघों ने अमृत घट,
छलकाया अम्बर से,
बूंदों ने चूम लिए,
धरती के गाल।
शरमाया ताल।
परदेसी मौसम ने ,
अम्बर के आँगन में,
टांग दिए मेघों के ,
श्यामल परिधान।
वातायन वातायन,
गंध घुली सौंधी-सी,
दक्षिणी हवाओं ने,
छेड़ी है तान।
किरणों ने बदन छुआ,
रिमझिम फुहारों का ,
फ़ैल गया अम्बर में,
सतरंगी जाल।
भरमाया ताल।
धरती ने गोदे हैं,
धानी के गोदने,
जादू-सा डाल रहा,
अन्तस् का मोद।
सावन की झड़ियों
पनघट की मांग भरी,
नदियों की भर दी है,
सूनी-सी गोद।
पाँखी-सा उतर रहा,
नभ थामें पंजों में,
धरती को पहनाने,
मेघों की माल।
ललचाया ताल।
#मनोज जैन ‘मधुर’
परिचय : मनोज जैन ‘मधुर’ इस संसार में १९७५ में आए,और आपका निवास ग्राम-बामौरकलां(शिवपुरी, (म.प्र.)है। अंग्रेज़ी साहित्य में स्नातकोत्तर की शिक्षा पाकर निजी कम्पनी में बतौर क्षेत्रीय विक्रय प्रबंधक कार्यरत हैं। आपकी प्रकाशित कृति-एक बूँद हम (गीत संग्रह),काव्य अमृत (काव्य संग्रह)सहित अन्य विविध प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का नियमित प्रकाशन है। दूरदर्शन व आकाशवाणी से भी रचनाएँ प्रसारित हुई हैं। संकलित प्रकाशन में ‘धार पर हम-2’ और ‘नवगीत नई दस्तकें’ आदि प्रमुख हैं। दो गीत संग्रह तथा पुष्पगिरि खण्डकाव्य व बालकविताओं का संग्रह प्रकाशनाधीन है। आपको कई सम्मान मिले हैं,जिसमें खास एक दोहा संग्रह सम्मान-मध्यप्रदेश के राज्यपाल द्वारा सार्वजनिक नागरिक सम्मान(२००९),शिरढोणकर स्मृति सम्मान,म. प्र. लेखक संघ का रामपूजन मलिक नवोदित गीतकार-प्रथम पुरस्कार (२०१०) और अभा भाषा साहित्य सम्मेलन का साहित्यसेवी सम्मान आदि हैं। २०१७ में अभिनव कला परिषद भोपाल द्वारा ‘अभिनव शब्द शिल्पी सम्मान’ से भी आप सम्मानित हैं। मध्य प्रदेश की इन्दिरा कॉलोनी(बाग़ उमराव दूल्हा)भोपाल में आप रहते हैं।
Post Views:
689
Fri Jun 30 , 2017
ऐसा क्यों हुआ कि कविता में पंक्तियों की पुनरावृत्ति का विधान प्रारम्भ हो गया ?आख़िर गद्य में पंक्तियों की पुनरावृत्ति का चलन नहीं रहा है,फिर पद्य में क्यों…?क्या गद्य में पंक्ति की पुनरावृत्ति के लिए अवकाश नहीं है ? गद्य का अनुशासन एक सीधी …रेखीय गति पर चला करता […]