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खेत में ही फंदा लगा करता है वह आत्मघात,
खबरें छपती अख़बारों में ,रहते सब चुपचाप।
करोड़ों खाते लफंगे,पर किसानों को नहीं माफी,
जिंदगी खत्म हो जाती और कर्ज रह जाता बाकी।
खाद,बीज की चिंता, ऊपर से महंगाई की मार,
विषम परिस्थितियों के आगे,वह जाता है हार।
अन्नदाता है जो हमारा, घर उसका क्यों खाली,
झूठे वादे शासन के,लगते हैं बिलकुल जाली।
रोते हैं बच्चे उसकी याद में,कमजोर हुई बीबी,
लाचारी खाएंगे अब तो ये और ओढ़ेगे गरीबी।
घटा है क्षेत्र कृषि का,मौसम में हुआ परिवर्तन,
उचित मूल्य की आस लिए,करता धरना प्रदर्शन।
उद्योगों को तो झट से मिल जाती हैं सुविधाएं,
पर मिटती क्यों नहीं किसानों के मन की दुविधाएं।
रीढ़ है जो अर्थव्यवस्था की,उसको भी सुन लें,
क्या होगा समाधान इसका,इस पर थोड़ा गुन लें
जब न होगा किसान तो फिर कैसे भरेंगे अपना पेट,
क्या ‘रेडिमेड’ दाल- चावल से जिएगा भारत देश॥
#गुणवती गुप्ता ‘गार्गी’
परिचय : सुश्री गुणवती गुप्ता छत्तीसगढ़ के पुसौर (जिला रायगढ़) में रहती हैं। आपकी शिक्षा एम.ए.(संस्कृत) और जन्म स्थान पुसौर ही है। व्यवसाय से प्रधान पाठक हैं। सन्त गाडगे लोक शिक्षक अवार्ड 2014 सहित बेस्ट टीचर ऑफ़ दी इयर अवार्ड 2015,सावित्री बाई फुले नेशनल अवार्ड 2016 से भी आप सम्मानित हैं। विभिन्न विषयों पर लेखन करती रहती हैं।
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