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बरकतें अपने साथ लाया था,
देकर नेमतें हज़ार जा रहा है॥
साल की लंबी जुदाई देकर,
देखो रमज़ान जा रहा है॥
किया था इस्तकबाल जिसका,
ख़ुशी और शादमानी से।
अश्कों में देकर वो आंसू,
आज जा रहा है॥
करकेे फिर मिलने का वादा,
तोहफा-ए-ईद दे जा रहा है॥
साल की लंबी जुदाई देकर,
देखो रमज़ान जा रहा है॥
#वासीफ काजी
परिचय : इंदौर में इकबाल कालोनी में निवासरत वासीफ पिता स्व.बदरुद्दीन काजी ने हिन्दी में स्नातकोत्तर किया है,इसलिए लेखन में हुनरमंद हैं। साथ ही एमएससी और अँग्रेजी साहित्य में भी एमए किया हुआ है। आप वर्तमान में कालेज में बतौर व्याख्याता कार्यरत हैं। आप स्वतंत्र लेखन के ज़रिए निरंतर सक्रिय हैं।
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Tue Jun 27 , 2017
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