कविता – अपने गौतम बुद्ध

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त्याग, बलिदान की प्रतिमूर्ति
शूरवीर थे गौतमबुद्ध,
जीवन में मोहमाया से दूर
रहने वाले थे गौतमबुद्ध।

मोक्ष प्राप्ति के हेतु छोड़ गये
अंधियारे में सारे सुख,
बसंत–सी हरियाली चली गयी
यशोधरा के नसीब में आ गये दुख।

स्वाभिमानी, पतिव्रता,
सुसंस्कृत थीं यशोधरा,
यथा नाम तथा गुण थे
सहनशीलता में थीं वसुन्धरा।

पति के संन्यास की इच्छा को भी
हँस कर स्वीकृत कर गयीं,
अपने जीवन के बसंत को कैसे
ऊष्मा में परिणीत कर गयीं!

पति को बोझिल नहीं किया
स्वयं पुत्र संग सब गम झेल लिया,
बुद्ध बने संन्यासी, नयन नीर
अंतस्तल में यशोधरा का दब गया।

विरहिणी की व्याधा सही
सहे कष्ट औ पीड़ा भारी,
राजसी ठाट–बाट छोड़
संन्यासिनी की जिन्दगानी जी सारी।

गौतम बुद्ध चुपचाप चले गये
निर्मोहि हो कर,
क्या हाल होगा माँ–बेटे का
इक पल न देखा पलटकर।

यही दशा है नारी की
इस धरा पर,
क्या वह जा सकती है
ऐसे पति को छोड़कर?

यशोधरा ने कंटकों की
चुभन को झेला,
अपना सिद्धान्त, वात्सल्य
औ पतिव्रत न छोड़ा।

श्रीमती प्रेम मंगल
यू एस ए
राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य मातृभाषा उन्नयन संस्थान भारत

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