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बरसो,बरसो रे मेघ,
बरसो,बरसो रे मेघ।
धूप से सूख रहे हमारे खेत,
बरसो,बरसो रे मेघ।
बरसो,बरसो रे मेघ॥
नदी,पोखर,तालाब और नाले,
कब बहेंगे फिर होकर मतवाले।
रिमझिम फुहारों को धरती पर भेज,
बरसो,बरसो रे मेघ।
बरसो,बरसो रे मेघ॥
मेंढक,झींगुर,मोर,पपीहा,
बुलाए तुमको मेघ संवरिया।
गर्मी से झुलस रही इनकी देह,
बरसो,बरसो रे मेघ।
बरसो रे मेघ॥
बाग बगीचे वन और उपवन,
झूलों से सज जाओ हे सावन।
लता कुंजों पर भी दृष्टि फेर,
बरसो,बरसो रे मेघ।
बरसो,बरसो रे मेघ॥
आस लगाए हैं धरती पुत्र हमारे,
आओ जीवन धन प्राणों के प्यारे।
हम कब से तुम्हारी राह रहे हैं देख,
बरसो,बरसो रे मेघ।
बरसो,बरसो रे मेघ॥
कोने कोने में छा जाए अब हरियाली,
भरपूर भोजन कोई पेट न हो खाली।
सुख समृद्धि का दे दो हमको नेग,
बरसो,बरसो रे मेघ।
बरसो,बरसो रे मेघ॥
#गुणवती गुप्ता ‘गार्गी’
परिचय : सुश्री गुणवती गुप्ता छत्तीसगढ़ के पुसौर (जिला रायगढ़) में रहती हैं। आपकी शिक्षा एम.ए.(संस्कृत) और जन्म स्थान पुसौर ही है। व्यवसाय से प्रधान पाठक हैं। सन्त गाडगे लोक शिक्षक अवार्ड 2014 सहित बेस्ट टीचर ऑफ़ दी इयर अवार्ड 2015,सावित्री बाई फुले नेशनल अवार्ड 2016 से भी आप सम्मानित हैं। विभिन्न विषयों पर लेखन करती रहती हैं।
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Wed Jun 14 , 2017
कुदरत की कारीगरी हो, ख़ुद अपनी पहचान हो। मत भूलो वज़ूद अपना, तुम भी एक इंसान हो॥ मानवता का मंदिर हो, प्रेम की मिसाल हो। ओ अपने भाग्य […]