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कुदरत की कारीगरी हो,
ख़ुद अपनी पहचान हो।
मत भूलो वज़ूद अपना,
तुम भी एक इंसान हो॥
मानवता का मंदिर हो,
प्रेम की मिसाल हो।
ओ अपने भाग्य विधाता,
तुम भी एक इंसान हो॥
मासूमियत की मूरत हो,
छल कपट अज्ञान हो।
दुनिया दारी में उलझे हुए,
तुम भी एक इंसान हो॥
#वासीफ काजी
परिचय : इंदौर में इकबाल कालोनी में निवासरत वासीफ पिता स्व.बदरुद्दीन काजी ने हिन्दी में स्नातकोत्तर किया है,इसलिए लेखन में हुनरमंद हैं। साथ ही एमएससी और अँग्रेजी साहित्य में भी एमए किया हुआ है। आप वर्तमान में कालेज में बतौर व्याख्याता कार्यरत हैं। आप स्वतंत्र लेखन के ज़रिए निरंतर सक्रिय हैं।
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Wed Jun 14 , 2017
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