सतरंगी भावों से सुसज्जित सुगंधित शब्दबद्ध गुलदस्ता डॉ अर्पण जैन ‘अविचल’ का ‘काव्यपथ’

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पुस्तक समीक्षा


आज हम चर्चा कर रहे हैं पत्रकारिता एवं संगणक विज्ञान अभियांत्रिकी में निष्णात, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर जय हिंदी का उद्घोष करने वाले, हिंदी को समर्पित, विद्वान, कवि एवं लेखक डॉक्टर अर्पण जैन “अविचल” के काव्य संग्रह “काव्यपथ” की ।


कविता की समझ, विद्वता से परिपूर्ण आपका संक्षिप्त संकल्प संबोधन पढ़कर पाठक मन सहज जिज्ञासु हो जाता है। मनोभाव को शब्द देते समय आपने कविता को व्याकरणबद्ध संचालक मानकों पर न कसकर कल्पना को प्रधानता प्रदान की है। प्रथम रचना “काव्यपथ की कल्पना” में डॉक्टर अर्पण जैन ने कविता के विविध आयामों को चिन्हित किया है।
जैसे “वही सृजक शब्दबद्ध सहित संकल्पित होकर,
काव्यपथ की अविचलता का मान बन गए”
कविता “क्रांति का पथ संचलन” आपकी परिष्कृत भाषा शैली का उत्तम उदाहरण है। हिंदी की जीत का संकल्प करने की अदम्य लालसा इस कविता में सहज परिलक्षित होती है। संसार के समस्त पिता को समर्पित आपकी भावपूर्ण कविता “पिता” मन को श्रद्धा से भर देती है । कवि कहते हैं –
“और वो फिर एक नया सूरज
अपनी संतति के लिए खोज लाते हैं”
“वसुंधरा” का गौरवगान करती कविता धरा की उदार छवि को बखूबी वर्णित करती है।
जीवन दर्शन एवं मन के अंतर्द्वंद को आपकी लेखनी ने “कश्मकश” के माध्यम से सहज प्रकट किया है।
कविता “चिड़िया” के माध्यम से कवि की कल्पना अनंत को नापने लगती है। आपकी संवेदनशील रचना परिंदों के अधिकार की बात कहती है।
प्रेम की पराकाष्ठा को दर्शाती कविता “मेरा प्यार” की अंतिम चार पंक्तियों में कवि मन का रहस्य एवं सार छुपा हुआ है। आप भी देखिए –
” हज़ारों गलतफ़हमियों के बावजूद भी ,
मेरा तुमसे जुदा होना संभव नहीं
क्योंकि मैंने विश्वास के दरख़्त में
संभावनाओं की खाद डाली है ‘अवि’ “
इसी प्रकार “ख़्वाब” “कुवांर की धूप” प्रेम और प्रकृति का संपूर्ण दर्शन लिए हुए हैं ।
परंपरागत धारणाओं को चुनौती देती कविता “स्त्री” डॉक्टर अर्पण जैन की एक क्रांतिकारी रचना है ।पुरुष प्रधान समाज में सीता,उर्मिला जैसी देवियों के साथ पक्षपातपूर्ण खंडित व्यवहार पर आपने तर्कपूर्ण प्रश्न उठाए हैं ।आशावाद संकल्पित “अविचल” मन सच कह उठता है-
आओ मिलकर हम सब,धारणाओं को बदल डालें ।सर्वश्रेष्ठ कोपल को ‘अवि’, स्वयं अविचल कर डालें।।
समसामयिक परिदृश्य से कवि की कलम भी अछूती नहीं रहती । “मगरूर नायक” कविता के माध्यम से वर्तमान में सर्वत्र व्याप्त विसंगतियों पर आपने करारा व्यंग्यात्मक प्रहार किया है।
“लौट आओ” में कवि भावुक होकर अपने प्रियतम से वापस लौट आने की अपील करता है ।
“खोज” “तुम्हारी हर ख़्वाहिश” “अधूरी दास्तां” कविताएं प्रेम, समर्पण मानव मन एवं प्रकृति के विभिन्न आयामों को प्रतिबिंबित करती है ।
पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण की होड़ में वर्तमान पीढी़ देहिक लिप्सा को लालायित रहती है। सोच में तालाब का ठहराव आ गया है ।आपकी कविता “प्रेम भी अपरिपक्व होने लगा है” आज के परिवेश पर एकदम सटीक प्रहार करती है।
“सीख” “ताना-बाना” प्रेम! तुम आज इतने चुप क्यों हो”? “प्रेमी नभ” आदि रचनाएं अंतर्मन और प्रेम के उदात्त स्वरूप, प्रेम में तरबतर इंद्रधनुषी रंगों को उकेरकर प्रकृति से साक्षात्कार करती है।
“विरह वेदना से उर भर आया” में अधीर मन प्रियतम का स्मरण करके शून्य से अनंत काव्यपथ पर यात्रा कर लेता है। इस कविता का अंश “नयनों में रस भरना” विरह को नई उपमा प्रदान करता है।
“प्रियवर” “मेरा बचपन बीत गया” “रिश्ते” “जीवन की तुम अधिकारी” कविताओं के माध्यम से डॉक्टर अर्पण जैन ने इंसानी जीवन के विविध मनोभाव को सुंदर शब्द चित्र देकर बहुरंगी बना दिया है।
अंतिम कविता ” सैनिक की पत्नी की प्रेम पाती” एक सैनिक की पत्नी के त्याग एवं समर्पण को चिन्हित करती है। आत्मबल, स्वाभिमान एवं देशभक्ति से परिपूर्ण सैनिक की पत्नी अपने आंसुओं, अपनी भावनाओं पर विजय पाकर सैनिक का मार्ग प्रशस्त करती है।
इस प्रकार विनम्र सहज सुलभ हिंदी आंदोलन को समर्पित डॉ अर्पण जैन “अविचल” ने अपने काव्य संग्रह “काव्यपथ” के माध्यम से हिंदी कविता के कथ्य को नई दिशा प्रदान की है ।जीवन दर्शन, प्रकृति, प्रेम, के साथ ही व्यवस्थागत, परंपरागत विसंगतियों को भी आपकी रचनाओं ने पूरी ईमानदारी के साथ लिपिबद्ध किया है।

( के.बी,एस, प्रकाशन, दिल्ली द्वारा 2017 में प्रकाशित काव्य संग्रह का मूल्य मात्र ₹50 है।)

(समीक्षक)

रमेश चंद्र शर्मा

16 कृष्णा नगर -इंदौर 452012
7974377737

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संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।