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बादलों से उनका
लगाव था,
दामिनी के प्रति उनका
झुकाव था,
भ्रामरी से वे बातें
करती थी,
कोयलिया-सी कूक
उत्साह भरती थी,
तितलियां भी मदमस्त हो
उड़ती थी,
पास आकर उनके उनसे
जुड़ती थी,
अचानक ,
बादलों का मृदंग बजाना
बन्द हो गया,
दामिनी का कड़कना
मन्द हो गया,
भ्रामरी को देखो
चुप हो गई,
कोयलिया की वाणी
विलुप्त हो गई,
तितलियां भी अठखेलियाँ
करना भूल गई,
बेलें भी बिना चढ़े,
आगे बढ़े,मुरझित हो
नीचे झूल गई,
वायु का बहना भी
रूक गया,
आसमां भी जैसे
झुक गया,
पृथ्वी का मन भी
बंजर हुआ
तेज धार वाला
बे-धार का खंजर हुआ,
उनकी स्मृति ने सबके
हृदय को छुआ,
उनके न रहने से जिंदगी में
धुंआ ही धुंआ,
अकेला रख सब को
वे दूर बहुत दूर गई,
रोते बिलखते छोड़ा उन्होंने
साथ मेरे,इन्हें भी
यादें ही यादें दे गई।
#सुनील चौरे ‘उपमन्यु’
परिचय : कक्षा 8 वीं से ही लेखन कर रहे सुनील चौरे साहित्यिक जगत में ‘उपमन्यु’ नाम से पहचान रखते हैं। इस अनवरत यात्रा में ‘मेरी परछाईयां सच की’ काव्य संग्रह हिन्दी में अलीगढ़ से और व्यंग्य संग्रह ‘गधा जब बोल उठा’ जयपुर से,बाल कहानी संग्रह ‘राख का दारोगा’ जयपुर से तथा
बाल कविता संग्रह भी जयपुर से ही प्रकाशित हुआ है। एक कविता संग्रह हिन्दी में ही प्रकाशन की तैयारी में है।
लोकभाषा निमाड़ी में ‘बेताल का प्रश्न’ व्यंग्य संग्रह आ चुका है तो,निमाड़ी काव्य काव्य संग्रह स्थानीय स्तर पर प्रकाशित है। आप खंडवा में रहते हैं। आडियो कैसेट,विभिन्न टी.वी. चैनल पर आपके कार्यक्रम प्रसारित होते रहते हैं। साथ ही अखिल भारतीय मंचों पर भी काव्य पाठ के अनुभवी हैं। परिचर्चा भी आयोजित कराते रहे हैं तो अभिनय में नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से साक्षरता अभियान हेतु कार्य किया है। आप वैवाहिक जीवन के बाद अपने लेखन के मुकाम की वजह अपनी पत्नी को ही मानते हैं। जीवन संगिनी को ब्रेस्ट केन्सर से खो चुके श्री चौरे को साहित्य-सांस्कृतिक कार्यक्रमों में वे ही अग्रणी करती थी।
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Mon Jul 31 , 2017
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