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इस मेले में मेरी नज़र कुछ ढूँढती है,
बहुत कुछ है यहां,फ़िर भी कुछ ढूँढती है।
सागर है गहरा,रत्न भी निकले हैं कई
ठंडक भी बहुत है,मगर मीठापन कुछ ढूँढती है,
इस मेले में मेरी नज़र…।
भोग हैं छप्पन,रसभरे भी हैं,
स्वाद लाजवाब,मगर नमक कुछ ढूँढती है,
इस मेले में मेरी नज़र…।
बड़ा-सा यन्त्र,अद्भुत है तंत्र,
‘सार’ तो बहुत है,मगर ‘भाव’ कुछ ढूँढती है,
इस मेले में मेरी नज़र…।।
#कैलाश भावसार
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