
यू जिंदगी की उलझनों में
हम उलझते चले गये।
न जीने की चाह है
और न मरने का डर।
यू जिंदगी की उलझनों में
हम उलझते चले गये।।
घर से निकले थे हम तो
खुशियों की तलाश में..२।
गम राह में खड़े थे
वो ही साथ हो लिए..२।
यू जिंदगी की उलझनों में
हम उलझते चले गये….।।
जिंदा होते हुए भी
हम मर जैसे ही है।
न जीने में है हम
और न मरने में ही।
अपनी की गलतियों की
अब सजा भोग रहे।
यू जिंदगी की उलझनों में
हम उलझते चले गये।।
होठो को सी चुके तो
जमाने ने ये कहा।
क्यों चुप हो जनाब
अजी कुछ तो बोलिये।
पहले तो बहुत गाते
और लिखते थे तुम।
अब क्या हो गया है
तुम्हें कुछ तो कहो।।
यू जिंदगी की उलझनों में
हम उलझते चले गये।
न जीने की चाह है
और न मरने का डर।
यू जिंदगी की उलझनों में
हम उलझते चले गये।।
जय जिनेंद्र देव
संजय जैन बीना,मुंबई