
जय महेश शिव शंकर भोले।
डम ढम डम ढम डमरू बोले।।
कैलासी काशी के वासी।
सत्य सनेही शिव अविनाशी।।१
भक्त सन्त शिवरात्रि जगाए।
द्वेष दोष भव दूर भगाए।।
मर्त्य मनोरथ मनुज जागरण।
सृष्टि हेतु रचि नव्यआभरण।।२
गज गणेश गौरी गो नन्दी।
कार्तिकेय केकी कालिन्दी।।
चंद्र गंग सिर जटा विराजे।
भूत भभूत भंग अहि साजे।।३
सिंधुमथन देवासुर हित चित।
पिये हलाहल सृष्टा जग हित।।
अमी देवहित हरिहित चपला।
कामधेनु जनहित गो कपिला।।४
सृष्टा तुम विध्वंशक भोले।
भक्ति शक्ति सत उमा सतोले।।
विषधर शिम्भु संग सुख दाता।
भंग कनक पय विल्व सुहाता।।५
अज्ञ ‘विज्ञ’ लिख कर चौपाई।
शिम्भु उमा प्रभु द्वार सुनाई।।
शर्मा बाबू लाल अमानी।
चाह कृपा तव औढरदानी।।६
बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
सिकंदरा, दौसा, राजस्थान