
गुस्से में एक दिन पति जी,
पत्नी से कुछ यूं बोले।
तंग अा गया तुमसे मैं,
अब क्या हम तुमसे बोलें।
बैठी बैठी खाती हो ,
और मोटी होती जाती हो।
संग मेरे जब चलती हो,
मुझे जरा ना भाती हो।
एशो आराम दिए सारे ,
दे दी सारी सुख सुविधाएं।
फिर भी ना जाने क्यों ,
हैं मन में तुम्हारे दुविधाएं।
फिगर तो देखो अपना तुम,
दिखने में अच्छी ना लगती हो।
पहले मनमोहनी अप्सरा थी,
अब तुम बदसूरत दिखती हो।
मुझसे पूछो मैं सारे दिन,
दफ्तर में सिर खपाता हूं।
तब जाकर मैं चार पैसे,
घर में कमा कर लाता हूं।
इतना सुनकर पत्नी बोली,
सुनो पति महाराज।
मेरी बातें सुनकर तुम ,
मत होना नाराज ।
सुबह से लेकर रात तक,
मैं चक्की सी पिसती हूं।
तब जाकर मैं तुम सबका,
पूरा ख्याल रखती हूं।
झाड़ू, पोछा ,बरतन ,कपड़े,
सारे काम मैं करती हूं।
दर्द, बीमारी ,परेशानी में ,
कभी नाटक ना करती हूं।
सुख सुविधाओं के जो तुम ,
एहसान गिनाते रहते हो।
कर दूं कुछ फरमाइश तो,
क्यों नजरें चुराते रहते हो।
सबको खिला कर खाना मैं,
बचा खुचा खुद खाती हूं।
ना बचे जिस दिन खाना,
तो भूखी ही सो जाती हूं।
रही फिगर की बात तो सुनो,
वो भी बिगड़ा तेरे खातिर।
जन्म दिए हैं बच्चे मैंने,
तेरा वंश की खातिर।
डांट भी खाती तेरी साजन,
बेरुखी भी तेरी सहती हूं।
मेरा साजन सबसे प्यारा,
सबसे ये मैं कहती हूं।
जाओ जाओ पति जी जाओ,
तुम सच ना सुन पाओगे।
देने बैठ गई यदि मैं तुमको ,
तो हिसाब ना ले पाओगे।
मेरे बिन घर, घर ना रहेगा,
जरा सोच कर देखो ना।
हो यदि मुमकिन ऐसा तो,
कुछ दिन जी कर देखो ना।
सुन पत्नी की बातें पति जी,
मन में जरा लजाए फिर।
पत्नी से नजरें मिलाने में,
थोड़ा सा सकुचाए फिर।
मेरी जानेमन , मेरी हमदम,
क्यों दिल पे इतना लेती हो।
मैंने किया था एक मजाक ,
तुम इतना नहीं समझती हो।
रचना –
सपना (स० अ०)
जनपद – औरैया