आलीशान इमारत की बुनियाद,
और तारीख लिखता मेरे देश में..
अपने लहू से हर ईंट को सींचता,
हर एक निरीह मजदूर मेरे देश में।
तन पर जिनके एक भी कपड़ा नहीं,
पेट पर बंधे हैं पत्थर भारी-भरकम..
जाने किन हालातो में है जीता-मरता,
भूख से लड़ता मजदूर मेरे देश में।
ताजमहल या लाल किला हो या हो,
मंदिर-मस्जिद या चर्च औऱ गुरुद्वारा..
हर इमारत में इसका लहू है,चीख लहू की,
किसको सुनाती चीख लहू की मेरे देश में।
अजंता और एलोरा को भी सींचा इसने,
अपने ही लहू के हर एक कतरे से..
जगता वो है अमीरों की रखवाली को,
फुटपाथ पर सोता है वो मेरे देश में।
कुर्बानी का बकरा वो है,वो हलाली का,
नीरो के स्वाद में खोता अपनी ही चमड़ी भी..
वीर वही है,वही जवान है सीमा का प्रहरी ,
पूत किसान का है मूल निवासी भी।
कभी बिलखता,कभी सिसकता,
पूंजी के पैरोकार की मनमानी पर..
बोझा ढोता लाध कमर पर,
मजदूर,आखिर मजदूर है मेरे देश में।
#संदीप तोमर
परिचय : 1975 में दुनिया में आने वाले संदीप तोमर गंगधाडी जिला मुज़फ्फरनगर(उत्तर प्रदेश ) से वास्ता रखते हैं एमएससी(गणित), एमए (समाजशास्त्र व भूगोल) और एमफिल (शिक्षाशास्त्र) भी कर चुके श्री तोमर कविता,कहानी,लघुकथा तथा आलोचना की विधा में अधिक लिखते हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में ‘सच के आसपास (कविता संग्रह)’,’टुकड़ा-टुकड़ा परछाई(कहानी संग्रह)’उल्लेखनीय है। साथ ही शिक्षा और समाज(लेखों का संकलन शोध प्रबंध),कामरेड संजय (लघु कथा),’महक अभी बाकी है’ (सम्पादित काव्य संग्रह), ‘प्रारंभ’ (साझा काव्य संग्रह),’मुक्ति (साझा काव्य संग्रह)’ भी आपकी लेखनी की पहचान है। वर्तमान में आप नई दिल्ली के उत्तम नगर में रहते हैं।