ख़ामोश दर्द(पुस्तक समीक्षा)

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rajesh sharma
कृति:- ख़ामोश दर्द
लेखक:- प्रमोद कुमार “हर्ष”
संस्करण:- प्रथम 2019
पृष्ठ:-64
प्रकाशक:- वर्तमान अंकुर नोएडा, गौतमबुद्धनगर
समीक्षक:- राजेश कुमार शर्मा”पुरोहित’
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      प्रस्तुत कृति “खामोश दर्द” प्रमोद कुमार “हर्ष ” हिमाचल प्रदेश के युवा कवि की प्रथम कृति है जिसमें 11 कहानियाँ है और 41 काव्य रचनाएँ हैं। कृति का मुखावरण चित्र में उम्मीदों का अरुणोदय बहुत ही सुन्दर लगता है। मनुष्य का जीवन संघर्षों से भरा होता है। कुछ बातें ऐसी होती है जो कहने में नहीं आती। ऐसा दर्द जो मन को दुख देता है परंतु अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता उसे खामोश दर्द कहा जाता है। लेखक ने अपनी इस कृति में उसी दर्द को काव्य रचनाओं व छोटी छोटी कहानियों के माध्यम से लिखने का सुंदर प्रयास किया है।
   इस कृति की भूमिका में आ.आरती प्रदर्शनी लिखती है कि प्रस्तुत कृति की कहसनियाँ मार्मिक एवम भावपूर्ण हैं । शब्दों में थोड़ा सा बिखराव अवश्य है परंतु भावनाएं सुगठित है। यह कहानियों एवम कविताओं का मिलाजुला संग्रह है। कविताओं की भाषा सहज है।कविताएं बहुत सी सच्चाई के करीब है।
   लेखक हर्ष मुझे कुछ कहना है शीर्षक से लिखते हैं बाल्यकाल से ही वे अपने पिताजी को पत्र लिखा करते थे। पिताजी को  अपने पुत्र में एक लेखक के लक्षण नजर आ गए थे। वे कहते अपना बेटा प्रमोद चिठी ऐसे लिखता है जैसे कोई लेखक हो। पूत के लक्षण पालने में नज़र आ जाते हैं। इनकी लेखन यात्रा बढ़ती गई। विचारो को कलम से लिखते रहे। प्रस्तुत कृति उसी का परिणाम है। इनकी पहली कविता जीवन की परिभाषा है। कृति की तमाम रचनाओं का श्रेष्ठ सम्पादन किया राजेश मेहरोत्रा राज ने । वे लिखते हैं प्रस्तुत कृति की रचनाएं ह्रदय स्पर्शी भावनात्मक है। कहानियों में दर्द की सारी संवेदनाओं को सरल व सहज शब्दों में लिखा है।शब्दों की सरलता व भावों की गहन वेदना रचनाकार की खास विशेषता है। लेखक हिमाचल प्रदेश के निवासी है इसीलिए इस कृति में वहाँ की संवेदनाओं को भी बखूबी दर्शाया गया है।
   प्रस्तुत कृति की भाषा पठनीय सरल व सहज भाषा मे रची काव्य रचनाएँ दर्द को बयां करती है। शब्दों का चयन सटीक हैं कहानियों में घटनाओं की क्रमिकता है। कृति में वर्तनी की त्रुटियों की भरमार है। कृति प्रकाशित करने से पूर्व प्रुफ रीडिंग सही से नहीं हुई। खामोश दर्द प्रथम काव्य रचना है जिसमें विरह वेदना की अभिव्यक्ति है। प्रेम की पराकाष्ठा है। कवि लिखता है आंसुओं के जलाते थे दीपक रोज तेरे इंतजार में। मेरी आशा मेरी अभिलाषा कविता में बताया कि मनुष्य की जिंदगी में हर रोज नया बदलाव आता है। हर जगह संघर्ष है। ऐसा क्या लिखूँ कविता में  कवि लिखता ह शहीद के बलिदान का सम्मान पर क्यों हो जाता है इनका अपमान। आज शहीदों के परिवारों  को पूछने वाले नेता गिनती के हैं। अन्नदाता की पीड़ा यानी किसानों की समस्याओं को कौन सुनता है जैसे मुद्दों को पैनी लेखनी से लिखा है अपनी कविताओं में हर्ष जी ने। कितने राज है कविता में कवि लिखता है हम तो हारकर भी जी रहे हैं जिंदगी की दौड़ को  वरना दुनियां कम नहीं है नीचे गिराने में। कवि ने समाज मे व्याप्त प्रतिस्पर्धा की अंधी दौड़ को बताया जिसमे लोग एक दूसरे की टाँग खींचने में लगे हैं।  नीयत रचना में कवि कहता है जीवन बना डाला अपनी खुली किताब हम जोड़ते रहे शायरी की किताब को।  हम सींच रहे थे प्यार की फुलवारी को खुश्बू को बनावटी कर रहा था वो। आज लोग वास्तविकता से कोसों दूर हो रहे हैं। बनावटी होते जा रहे हैं। कसक कविता में रिश्तों में आपसी अपनत्व की कमी को दर्शाता है  अब मित्रता के मायने बदल गए। कृष्ण सुदामा सी मित्रता अब नहीं मिलती। तस्वीर कविता में एक सच्चे प्रेमी का सजीव चित्रण है कवि लिखता है एहसास के रंगों से बनी इश्क की तस्वीर हो तुम। देखा जिसको पूरी रात वो ख्वाब की ताबीर हो तुम।।
  आवाज कविता में लड़की की जिंदगी का वर्णन है जब तक लड़की की शादी नहीं होती उसे अपने पिता के आंगन में खूब प्यार मिलता है। जब शादी होती है तो उसे नए लोग नए रिश्ते नई जिम्मेदारियां मिल जाती है। बेटियां एक नहीं वास्तव में दो कुलों में उजियारा करती है। इश्कियां में इश्क को खुदा कर लिया। प्रेम में  खुदा मान बैठते है यह सच्चे प्रेमी के लक्षण हैं। जज्बात ए इश्क में नूर ए  शमा इश्क की अब मैं छुपाऊं कैसे। इश्क में समर्पण होता है कौन किसे चाहता है इतनी सा प्रश्न निर उत्तरित रहता है।सजदा पुकार इल्तिजा यथार्थ रोशनी खुमार नूर गुजारिश जयकार कारवां आसमान दे दो बाकी है चाहत कौन लिख पायेगा रह गए सांझ लेखा जोखा दास्तां काव्य रचनाएँ इस कृति की प्रमुख रचनाएँ हैं।
  माँ कविता में कवि मां की महिमा लिखता है। माँ तू नहों होगी तो मेरा न जाने क्या होगा। माँ ही संतान की सच्ची पथ प्रदर्शक होती है। जाने क्या कहेंगे में बताया कि प्रयास खुद को ही करने होते हैं। जीवन मे सफल होने के लिए। मंजिल कविता में कौमी एकता की बात रखता कवि लिखता है। ना मन्दिर चाहता हूं ना मस्जिद चाहता हूँ मैं हूँ आम आदमी बस सुकून की सांस चाहता हूँ। धार्मिक व जातीय झगड़े व्यर्थ है इंसान को इंसानियत से रहना चाहिए । हर इंसान अमन चाहता है। शिकवा कविता में कवि लिखता है बादल भी सीखने लगे है आँसू बहाना जब सावन की धूप भी धरती को जलाने लगे। पर्यावरण प्रदूषण से प्रकृति का संतुलन बिगड़ गया है असमय बारिश होने लगी है। सावन में भी धरती जलती है। पृथ्वी का तापमान बढ़ते जाना चिंता का विषय है।खिंद कविता में वर्तमान में बदलते परिवेश व पाश्चिम के अनुकरण से आये परिवर्तन को कवि हर्ष ने लिखा है कच्चे रास्ते अब सीमेंट से पटने लगे हैं इन चिथड़ों के मोल अब घटने लगे हैं। माँ के लिए लिखा है सीते हुए टुकड़ों को माँ जी लेती है जिंदगी सारी। साटन का कपड़ा बन्द हो गया अब लोग सिल्क पहनने लगे।
   कहानी अनकहा दर्द में पति द्वारा पत्नी को बाल खींचकर रोज रोज मारने से बचने के लिए वे ब्यूटी पार्लर जाकर बॉय कट से भी छोटे बाल कटाते समय रुदन करती अपनी सहेली से  कहती है। नारी उत्पीड़न पर आधारित कहानी सामयिक लगी। आज भी पुरुष नारियों को मारते पीटते हैं।
  पछतावा कहानी में अपने पिताजी की मौत का समाचार सुन घमंडी बेटा मन ही मन पछताता है उसको गलतफहमी होती है कि वह इतने ऊंचे पद पर खुद की मेहनत से पहुंचा हैं। वह अपने पिताजी के फोन का उत्तर नहीं देता था। लालच कहानी में सास द्वारा पोते की इच्छा करना बहु को मन ही मन कमजोर कर देता है उसको शारीरिक व मानसिक कमजोर कर देता है। उसमें खून की कमी हो जाती है। डॉक्टर प्रसव के दौरान बहु को बचा नहीं पाता है। बहु के तीसरी संतान भी लक्ष्मी होती है। सास अपने बेटे से नई बहू लाने व उससे पोते होने की मन मे इच्छा करती हुई अस्पताल से बाहर आ जाते हैं। आज भी पुत्र चाह में कितनी ही महिलाओ की असमय मौत हो रही है।  पड़ाव कहानी में  बुढ़ापे में देखभाल करने में आज की पीढ़ी को कितना दुख होता है। माता पिता व बुजुर्गों की सेवा आज की पीढ़ी भूल चुकी है। संस्कार व मर्यादा की हद लांघ चुकी है।  तोहफा कहानी अच्छी लिखी है।शुरुआत कहानी में  बताया कि एक नोकरी वाली लाफ़की बेरोजगार लड़के से या छोटे रोकगार वाले लड़के से शादी कर लेती है जिंदगी की अच्छी शुरुआत हो जाती है। माता पिता खुशी से ऐसा रिश्ता जोड़ने लगे हैं। जिंदगी की हार कहानी भी इस कृति की महत्वपूर्ण कहानी है।
  आख़िर क्या दे पाओगे ख्वाहिश यादें काली बदली कुर्ता ख्वाब मोन अंतर्द्वंद सवाल शुरुआत भँवर ना जाने क्यों ख्वाहिश दिल बचपन का दोस्त विश्वास बावरा मन स्वाभिमान आंखों की भाषा श्रेष्ठ रचनाएँ हैं। पृष्ठ 29 व पृष्ठ 43 पर एक ही रचना छपी है मगर 29 पर शीर्षक मंजिल व 43 पर ख्वाहिश शीर्षक से रचना प्रकाशित की गई है।
   लड्डू गोपाल कहानी में नकली साधुओं द्वारा मासूम बच्चों के साथ कुकृत्य करने जैसी घटनाओं पर आधारित कहानी है जिसमे वनखण्डी महाराज दस वर्ष की बालिका को रास लीला के चक्कर मे फंसाता है वे मोहजाल में फंस जाती है लड्डू गोपाल बदले में ले लेती है। कितना स्तर गिर गया समाज मे आज बच्चे लड़कियां सुरक्षित नहीं है।
   कर्ज कहानी में डॉक्टर शहर में बड़े बड़े अस्पताल खोलकर मनमाना रुपया कमाने में लगे हैं कहानी में डॉक्टर की मां जानकी देवी इलाज के बिना गाँव मे दम तोड़ देती है। लालच में डॉक्टर साहब माँ को खो देते हैं। आज डॉक्टरों में मानवीय मूल्यों की कमी देखने को मिलती है जो चिंताजनक है।
   उम्मीद व भरोसा कहानियां भी इस कृति की महत्वपूर्ण कहानियां है। बेटियाँ कविता कवि ने बहुत अच्छी लिखी लेकिन इसमें बहुत अशुद्धियाँ हैं। बढ़ा की जगह पर बाधा लिख दिया है। बेटियाँ घर का मान बढाती है। आवाज काव्य रचना में कवि लिखता है”मन्दिर की घण्टी हो या फिर वाणी हो करतार की तू बसता है हर जगह ये अहसास कराती है। परमात्मा
कण कण में व्याप्त है। ज़रे ज़रे में खुदा है।कुदरत की हर रचना में बसती है मोहब्बत। इसलिए भाईचारे व एकता से रहकर देश के विकास में भागीदारी निभाना चाहिए।
   साहित्य जगत में युवा कवि व लेखक प्रमोद कुमत हर्ष को बधाई देता हूँ। आपकी यह कृति साहित्य के क्षेत्र में नई पहचान दिलायें। हार्दिक शुभकामाएं। आप ऐसे ही लिखते रहें।
#राजेश कुमार शर्मा ‘पुरोहित’
परिचय: राजेश कुमार शर्मा ‘पुरोहित’ की जन्मतिथि-५ अगस्त १९७० तथा जन्म स्थान-ओसाव(जिला झालावाड़) है। आप राज्य राजस्थान के भवानीमंडी शहर में रहते हैं। हिन्दी में स्नातकोत्तर किया है और पेशे से शिक्षक(सूलिया)हैं। विधा-गद्य व पद्य दोनों ही है। प्रकाशन में काव्य संकलन आपके नाम है तो,करीब ५० से अधिक साहित्यिक संस्थाओं द्वारा आपको सम्मानित किया जा चुका है। अन्य उपलब्धियों में नशा मुक्ति,जीवदया, पशु कल्याण पखवाड़ों का आयोजन, शाकाहार का प्रचार करने के साथ ही सैकड़ों लोगों को नशामुक्त किया है। आपकी कलम का उद्देश्य-देशसेवा,समाज सुधार तथा सरकारी योजनाओं का प्रचार करना है।

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।