
निर्वसन जब सत्य घूमे झूठ घूमे ठाट से।
ये बुरे दिन की मुनादी है अयोध्या घाट से।
खूब है ये भी सियासत ख़्वाब बेंचे चल दिये
वायदा था रेशमों का है गुजारा टाट से।
देश की इज्जत लगी है दाँव पर अब तो उठो
टांग को खींचो गिरा दो हुक्मराँ को खाट से।
कम अगर हों जेब के दस बीस चेहरे तो सुनों
एक चेहरा और मढ़वा लो किसी खुर्राट से।
प्लेट में बादाम काजू लीडरों के वास्ते
और जनता के लिए है धूल खाये बाट से।
है कोई योद्धा अगर आये सभा के सामने
लोग आजिज हो चुके हैं नर्तकों से भाट से।
आप हम ये वो करेंगे तो कहेगा कौन फिर
दूरियां अच्छे दिनों की पूछिये सम्राट से।
चित्रगुप्त