
बहन के जन्म लेने पर भी
मां स्वयं को निसन्तान मानती रही
मुझे दुनिया मे लाने को
आए दिन वह छटपटाती रही
न जाने कितनी मन्नते की
धर्मालयो के चक्कर काटे
मां की प्रबल पुत्र कामना से
बहन ने खुद को जोड़ लिया
भाई चाहत को आगे आई
परमात्मा से फरियाद लगाई
व्रत रखें,पूजा,मन्नत की
16 सोमवार के दीया जलाई
तब जाकर मेरा उदभव हुआ
साथ मे मेरे ‘मैं’ का भी
मैं मां की आंखों का तारा था
पिता का राजदुलारा था
बहन के दिल की धड़कन था
यानि सबकुछ मैं ही मैं था
भूल चुके थे उस बहना को
जो खुशियों का आधार बनी
मेरा ‘मैं ‘बढ़ता ही गया
बहन पर हावी होता ही गया
मेरी शरारत ,शरारत न थी
बहन का बोलना अखरता था
मेरे खाने में दूध मलाई
बहन को सूखा खाना पड़ता था
मेरी पढ़ाई कान्वेंट में
उसे सरकारी में जाना पड़ता था
भेदभाव की इंतहा पर भी
मैं गुस्से से लाल रहा
बहन शांत स्वभाव वाली रही
मेरे से घर मे बवाल रहा
जिसे पराई अमानत कहते हम
उसी से घर खुशहाल रहा
खुद रक्षा को मेरी आगे रहती
रक्षा बंधन वही निभाती है
मैं खुश रहूं ‘मैं’ त्यागकर
बहन दुआ यही मनाती है।
#डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट
रुड़की(उत्तराखंड)