सुकमा में वीरों के लहू का बदला, हमको लेना होगा,
वक्त आ गया,जवाब ईंट का पत्थर से अब देना होगा।
राह से भटके नहीं हैं वो,अब बातों से नहीं मानेंगे,
जब तक उनके सीने में हम गोलियां नहीं दागेंगे।
खरपतवार से खेत भरा है,अब तो इसे जोतना होगा,
फसल उगाने नई पौध को,हमको वहां रोपना होगा।
मानवाधिकार नहीं,अब सेना का अधिकार चाहिए
आतंकी और नक्सलियों को जिंदा पकड़ के जलाइए।
दिल्ली में बैठे शासक को,यह फैसला लेना होगा,
वक्त आ गया,जवाब ईंट का पत्थर से अब देना होगा।
कब तक कफन तिरंगे का,मेरे वीरों पर डालोगे,
आस्तीन के सांपों को कब तक घर में पालोगे।
खेल-खेल में खेल रहे हैं,ये वीरों के खून की होली,
बुझा रहे हैं घर का दीपक, मिटा रहे बिंदिया रोली।
सेना के कंधों से जिस दिन, मानवाधिकार का बोझ हटेगा,
पत्थरबाज और नक्सलियों का उस दिन से अनुपात घटेगा।
न्यायमूर्ति जो बनकर बैठे,उनको यह सोचना होगा,
वक्त आ गया,जवाब ईंट का पत्थर से अब देना होगा।
#सुरेन्द्र सिंह राजावत
परिचय : सुरेन्द्र सिंह राजावत राजस्थान के बयाना में रहते हैं। आप भारतीय सेना में कार्यरत हैं। आपको लिखने का शौक है तथा देशभक्ति पर अधिक कलम चलाते हैं,ताकि सबको देशप्रेम की प्रेरणा मिलती रहे।