मेरे छत पर बैठी चिड़िया,
मांगे मुझसे पानी रे..
बून्द-बून्द को तरसे आंगन,
तरसे बाग-बागानी रे।
ताल-तलैया सूख गए,
सूखा आंख का पानी रे..
बादल रुठे,रुख ठूठे,
रुठी बरखा रानी रे..
मेघराजा भूल गए मग,
बिसरा चुल्लू पानी रे..
मेरी छत पर बैठी चिड़िया,
मांगे मुझसे पानी रे..।
बिन पानी ये जीवन सूना,
क्यों कीमत न जानी रे..
कण-कण से गागर है भरता,
धरती सजती धानी रे..
कोमल चंचल मुखड़े खिलते,
भरता नयन जब पानी रे..
पानी तेरी ये ही कहानी,
कहती दादी नानी रे..
मेरी छत पर बैठी चिड़िया,
मांगे मुझसे पानी रे..।
(पानी पक्षियों और प्राणियों के लिए जीवन है,पानी बचाएं,वरना आँखों में भी पानी नहीं बचेगा)
#विजयलक्ष्मी जांगिड़
परिचय : विजयलक्ष्मी जांगिड़ जयपुर(राजस्थान)में रहती हैं और पेशे से हिन्दी भाषा की शिक्षिका हैं। कैनवास पर बिखरे रंग आपकी प्रकाशित पुस्तक है। राजस्थान के अनेक समाचार पत्रों में आपके आलेख प्रकाशित होते रहते हैं। गत ४ वर्ष से आपकी कहानियां भी प्रकाशित हो रही है। एक प्रकाशन की दो पुस्तकों में ४ कविताओं को सचित्र स्थान मिलना आपकी उपलब्धि है। आपकी यही अभिलाषा है कि,लेखनी से हिन्दी को और बढ़ावा मिले।