कोरा कागज

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सादी सादी सी रही,जिन्दगी हमारी
ना रहै रंगीनियो के निशान,अर्जी हमारी।

कोरे कागज की अनूठी, मिशाल बनी रहे
कोई शब्द नही वो, वेमिशाल बनी रहे।।

पहचान अपनी सादगी पर , तक्कलुफ कयों है
हो रंगीनियो मे डूबे हुए, फिर तकलीफ क्यों है।

विलासिता की कालाबाजारी, देख रहा हूँ
अपनो से मुँह कैसे फेरे, सीख रहा हूँ।

चका चौंध दुनिया की, हसीन शाम देखा
हर जगह झूठ और फरेब,का बाजार देखा।

सभी का जीवन है, कोरा कागज ही
चंद शब्द नही निकलते, देख अपनो के हालत भी।

“आशुतोष”

नाम। – आशुतोष कुमार
साहित्यक उपनाम – आशुतोष
जन्मतिथि – 30/101973
वर्तमान पता – 113/77बी
शास्त्रीनगर
पटना 23 बिहार
कार्यक्षेत्र – जाॅब
शिक्षा – ऑनर्स अर्थशास्त्र
मोबाइलव्हाट्स एप – 9852842667
प्रकाशन – नगण्य
सम्मान। – नगण्य
अन्य उलब्धि – कभ्प्यूटर आपरेटर
टीवी टेक्नीशियन
लेखन का उद्द्श्य – सामाजिक जागृति

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