
जिम्मेदारी की गठरी ले मैं दौड़ आया हूं
ए नौकरी मैं घर छोड़ आया हूं
बचपन के वो खेल खिलौने, रेत से बनते घर के घरौंदे,
वो बारिश का पानी जो कागज की कश्ती डुबो दे,
उन सारी यादों से मैं मुंह मोड़ आया हूं,
ए नौकरी मैं घर छोड़ आया हूं….. .
वो गांव की गलियां वो यारों की टोली,
वो अल्हड़ पन की मस्ती वो भाभी संग हंसी ठिठोली,
उन किस्सों को उन हिस्सों को पीछे छोड़ आया हूं,
ए नौकरी मैं घर छोड़ आया हूं…..
वो मां के हाथ की रोटी वो पिता के कांधे का झूला,
वो भाई से तकरारे, बहना के नखरो को भूला,
वो कुटुंब कबीला सब सारा मैं छोड़ आया हूं,
ए नौकरी मैं घर छोड़ आया हूं……
वो किसी की आंखों पर मरना वो किसी की यादों में रमन,
वो किसी के इश्क की खुशबू से स्वयं को आनंदित करना,
उन कसमों को उन रस्मों को मैं तोड़ आया हूं,
ए नौकरी मैं घर छोड़ आया हूं……..
सचिन राणा हीरो
हरिद्वार (उत्तराखंड)