नहीं चाहिए तुम्हारी झूठी
संवेदना,खोखली हमदर्दी,
और फरेबी शाब्दिक जुगाली।
मत करो मजदूर दिवस
की आड़ लेकर मुझे इन्सानी
बिरादरी से अलग।
कर्म तुम भी करते हो
कर्म मैं भी करता हूँ,
जिन्दगी से परेशान तुम भी,
परेशान मै भी..
तो फिर सिर्फ मेरी ही बेबसी,
लाचारी और बदहाली पर
ये घड़ियाली आंसू क्यों? ?
मैं अपनी जिंदगी से उतना परेशान
कभी नहीं रहा,जितना जिन्दगी से
परेशान उन लोगों ने
मुझे बना दिया है,
जो अपने अवसाद की हताशा
को मेरी बेबसी से ढंक देना चाहते हैं।
जानकारी के लिए बता दूँ,
मैं अपनी जिंदगी से खुश हूँ..
रोज कमाते हैं रोज खाते हैं,
शाम होने पर फुटपाथ पर
अखबार बिछाकर सो जाते हैं..
याद रहे मजदूर कभी ,
नींद की गोली नहीं खाते।
एक-दूजे के दुख-दर्द में
हिस्सा बंटाते हैं,
और वक्त आने पर देश और
समाज के भी काम आ जाते हैं।
साल में एक बार
मुझ पर तरस खाने वालों !
मुझे तुम पर तरस आती है कि,
मकान के गढ्ढे खोदने से लेकर
नल सुधरवाने और दूसरी मंजिल
पर गेहूँ की बोरी चढ़वाने
तक हर छोटे-मोटे काम
के लिए मेरे आगे गिड़गिड़ाने
वाले ही आज मेरी दुर्दशा
पर आंसू बहा रहे हैं।
जरा सोचो कि जिस दिन,
दुनिया के सारे मजदूर
हड़ताल पर चले जाएंगे,
उस दिन तुममें से कितने लोग
लाचार नजर आएंगे ?
शुक्र है कि हममें अभी
अपना काम खुद करने की,
आदत शेष बची है..
वर्ना तुम्हारी
तरह हमारा भी भगवान
ही मालिक होता।
जब हम और तुम एक ही माटी
के बने पुतले हैं,
तो फिर यह विभेद कैसा?
दौलत की चकाचौंध में
तुम हमदर्दी जताने का सलीका
भी भूल गए।
गले से लगाना और
पास बिठाना तो बहुत बड़ी
बात होगी,
अगर हो तुममें साहस
और सच्ची हमदर्दी तो आज,
मजदूर दिवस पर अपने
कलेजे पर हाथ रखकर
करो इस सच्चाई को स्वीकार
कि ‘हाँ मैं मजदूर हूँ’..।
#डॉ. देवेन्द्र जोशी
परिचय : डाॅ.देवेन्द्र जोशी गत 38 वर्षों से हिन्दी पत्रकार के साथ ही कविता, लेख,व्यंग्य और रिपोर्ताज आदि लिखने में सक्रिय हैं। कुछ पुस्तकें भी प्रकाशित हुई है। लोकप्रिय हिन्दी लेखन इनका प्रिय शौक है। आप उज्जैन(मध्यप्रदेश ) में रहते हैं।