मुक्तक

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अखबार में खबर छपी है,
स्मार्ट शहर में नाव चली है,
मां दुर्गा भी बचा नहीं पायीं,
डूबी पटना की गली-गली है.
(2)
घर-परिवार बिछड़ गयें हैं,
बच्चें-बूढें सब बिलख रहें हैं,
बादल का कलेजा फटा ऐसा,
तिनके-सा सब बिखर गयें हैं.
(3)
करोड़ों का पंडाल सजा है,
लाखों पेट में हड़कंप मचा है,
चार दिन की चकमक चांदनी,
फिर वही अंधेंरा लिजलिजा है.
(4)
जनता कर रही चीत्कार,
व्यवस्था हुआ है बंटाधार,
आश्वासन के हाई-डोज से,
भूख नहीं मरती सरकार.
(5)
समय की कश्ती पर हो सवार,
हिचकोले खाते जा रहे उस पार,
जग-सिंधु के झलमल जल हम
बुलबुले – सा है जीवन निस्सार.
(6)
भागमभाग भरा है जीवन,
कितना कुछ छिपाये है मन,
आई हाथ जो छुट्टी आज प्रिय,
कुछ अपनी कह,कुछ मेरी सुन.
(7)
कसौटी हो नहींं सकता चंद्रयान,
बहुत ऊंची है हौसलों की उड़ान,
एक दिन तिरंगे से पट जायेगा नभ
देखकर चांद भी हो जायेगा हैरान.
#पूनम (कतरियार)

matruadmin

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