Read Time50 Second

अब तुम्हारा रहम नहीं मुझे भी हिस्सेदारी चाहिए
मुल्क चलाने के वास्ते मुझे भी भागीदरी चाहिए
हर हाथ हो मज़बूत अपने नेक इरादों को लेकर
अपना भाग्य लिखने को मुझे भी दावेदारी चाहिए
सदियों तक हुआ राज़तंत्र भेष बदल बदल कर
तुम्हारी नियतों में तो मुझे भी ईमानदारी चाहिए
न ही लालच,न सहारा और न ही कोई होशयारी
गर हूँ वतन का हिस्सा तो मुझे भी खुद्दारी चाहिए
कैसे छल कर जाते हो हर एक अपने वायदों से
गर अब नहीं संभले तो मुझे भी राज़दारी चाहिए
सलिल सरोजनई दिल्ली
Post Views:
551