गर हूँ वतन का हिस्सा तो मुझे भी खुद्दारी चाहिए

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salil saroj
अब तुम्हारा रहम नहीं मुझे भी हिस्सेदारी चाहिए
मुल्क  चलाने  के वास्ते मुझे भी भागीदरी चाहिए
हर हाथ हो  मज़बूत अपने नेक इरादों को लेकर
अपना भाग्य लिखने को मुझे भी दावेदारी चाहिए
सदियों तक  हुआ राज़तंत्र  भेष बदल बदल कर
तुम्हारी नियतों  में तो  मुझे भी ईमानदारी चाहिए
न ही लालच,न सहारा और न ही कोई होशयारी
गर हूँ वतन का हिस्सा तो मुझे भी खुद्दारी चाहिए
कैसे छल कर जाते हो हर एक अपने वायदों से
गर अब नहीं संभले तो मुझे भी राज़दारी चाहिए
सलिल सरोज     
नई दिल्ली 

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